आदर्श जीवन | Aadarsh Jeewan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० गए हैं। इस अवख्ा में उन्हें अपनी शिक्षा का आरंभ घर ही में करना चाहिए। उन्हें पुत्र वा भाई के रूप में शिक्षा मदद करनी हागी । इन रूपों में उन्हें स्वाथत्याग अधीनता सच्चाई इमानदारी इत्यादि गुँधों का अभ्यास करना चाहिए जा जीव के संग्राम में कवच शरीर अख्म का काम देंगे । घर पर की सीखी हुई यह बातें बाहर भी पूरा काम देंगी । ये घरेलू संस्कार संसार की विकट यात्रा में रचक देवताओं के समान उनके साथ रहेंगे उन्हें लड़खड़ाकर गिरने से बचानेंगे उनके कानों में झाशा का मधुर संगीत डालेंगे श्र उनके आगे झागें स्वच्छ सूर्य का प्रकाश फौल्ञावेंगे। इसी लिये मैंने पुस्तक के आरंभ ही में पिता-पुत्र के संबंध का एक सुंदर हृष्टांत दिखाया है। पिता के प्रति पुत्र के तीन कत्तंव्य हैं--स्नेह सम्मान ग्रौर झराज्ञापाह्नन । यह कहा जा सकता है कि जहाँ श्राज्ञा- कारिता और सम्मान नहीं वहाँ स्नेह नहों रह सकता । अआजकल माता-पिता के प्रति लीक पीटने भर को थ्राधा स्वाथमय स्नेह ही जिलमें झघीनता श्रौर विवेक की प्रशृत्ति नहीं होती बहुत से लड़कों में दाता है । यह वह यूढ़ पवित्र श्रौर सच्चा स्नेह नद्दीं है जिसे पुत्र अपना कत्तेड्य समभे घोर पिता जिसका झमिमान करे । जब कोई नवयुवक घर से ऊचब जाय या अपनी शुप्त बातें को पिता के काने में डालने से हिचके तो उसे तुरंत सँमभल्व जाना चाहिए झ्रौर यह सम लेना चाहिए कि जिस माग पर मैंने पैर रखा है उससे मेरा




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