तुलसी | Tulsi

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Tulsi by माता प्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्घ ] [ तुलसी दासेन लिखा डुश्रा है और दूसरी है एक पंचायतनामा जिसके द्वारा गोत्वामी जी के समकार्लीन श्र पड़ोसी टोडर चौधरी के देहा- वसान के झ्नंतर उनके उत्तराधिकार का निपटारा उनके उत्तराधिकारियों के बीच इुद्रा था। इस पर सं० १६६६ श्राश्विन शुक्क १३ शुभ दिन की तिथि दी हुई है। इस पंचायतनामें के सिरे की ही कुछ पंक्तियाँ गोस्वामी जी के हाथ की लिखी कही जाती हैं किंतु गोस्वामी जी का हस्ताक्षर इस पंचायतनामे पर कहीं नहीं है । गणना के अनुसार दोनों ठिथियाँ शुद्ध उतरती हैं । दोनों लिखावटों में २६ वर्षों का अंतर है किंतु लिखावरों की शैली झ्रादि में जो अंतर है उसका समाधान समय के इस अंतर से ही नहीं किया जा सकता-दोनों दो विभिन्न व्यक्तियों की लिखावरटें जैसी लगती हैं । इसलिए हो सकता है कि केवल वाल्मीकीय रामायण की लिखावट गोस्वामी जी की हो दूसरी न हो । ्योध्या की सामग्री तयोध्या में एक स्थान है जो तुलसी चौरा नाम से प्रसिद्ध है । कहते हैं कि गोस्वामी जी ने रास चरित मानस की रचना इसी स्थान पर की थी | इस चौरे के संबंध में एक फ़कीर मोहन साई का रचा हुआ एक गीत बताया गया है ्ोर इन मोहन साई का समय सं० १८१२ बताया गया है ( माधुरी वर्ष १२ खंड २ प्रष्-२६४ ) । इस गीत में कहा गया है गोस्वामी जी ने यहीं मानस-प्रणमय का प्रारंभ सं ० १६३१ की रामनवसी को किया और सं०१६३३ में रामविवाह तिथि पर-- अर्थात्‌ सागशीष शुक्ला ४५ को उसे यहीं समाप्त किया । इससे ज्ञात होता है कि श्रब से प्रायः २०० वर्ष पूर्व सानस को तिथि के विषय में झयोध्या में इस प्रकार की जनश्रुति थी । अयोध्या में एक श्रन्य महत्व की सामग्री राम चरित मानस के बालकांड की एक प्रति है जो वहाँ के श्रावणकूंज नामक मंदिर में




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