हिंदी- शब्दसागर भाग 7 | Hindi Sabdasagar Part 7

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्लो. झूछड७ स्रहुदी (३) विद्या । इब्स । (४) एक रागिनी जो शंकरासरण और नट नारायण के योग से उत्पन्न मानी जाती है । (५) बाही .. विशेष--भारत के प्रायः सभी प्रांतों में इसकी खेती तेल के बूटी । (६) साउकैंगनी ।. ज्योतिष्मती ता । (७) सोम लिये होती है । इसका डंठछ दो तीन हाथ ऊँचा होता है। छता । (५) एक छंद का नास | (९) गाय । ह पत्ते हरे और करे किनारेवाले होते हैं। ये चिकने होते और डंडी | सरस्वती कंठामरणु-संज्ञा पुं० [-सं० ] (१) ताल के साठ मुख्य से सटे रहते हैं । फूल चमकीले पीछे रंग के होते हैं। फलियाँ सेदों में से एक । (२) भोज कृत अलकार का एक सर थ। दो तीन अंगुकु छंबी पतली और गोल होती हैं जिनमें सहीन (३) एक पाठशाला जिसे घार के परमारवंशी राजा भोज बीज के दाने भरे होते हैं। कात्तिक में गेहूँ के साथ तथा ने स्थापित किया था अलग थी इसे बोले हैं । माघ तक यह तैयार हो जाता है। | सरस्वती-पूजा-संज्ञा खी० [ सं० | सरस्वती का उत्सव जो सरसों दो प्रकार की होती है--लाल और पीली या सफेद । कहीं चस तप॑ चमी को और कहीं आदिवन में होता है । इसे लोग मसाले के काम में भी लाते हैं। इसका तेल जा | खरहंग-संज्ञा पुं० [ फ्रा० ] (१) सेना का अफसर । नायक | कइवा तेल कहलाता है नित्य के व्यवहार में आता है । कान । (२) सझ । पहलवान । (३) जबरदृस्त। बलवान । इसके पत्तों का साग बनता है । (४) पैदल सिपाही । (५) चोबदार । (९) कोतवाल । सरस्वती-संज्ञा खी० [ सं० ] (१) एक प्राचीन नदी जा पंजाब में | खरहंगी-संज्ञा खी० [ फा ] (9) सिपहगिरी । सेना की नौकरी । बहती थी और जिसकी क्षीण धारा कुरुक्षेत्र के पास अब भी (२) वीरता । (३) पहलवानी है। (२) विद्या या वाणी की देवी । वाग्देवी । भारती । | खरह-संज्ञा पुं० [ सं० शलभ प्रा० सरह | ् सरसौ-संज्ञा खी० [ सं० सर्प ] एक घान्य या पौघा जिसके गोल गोल छोटे बीजों से तेल निकछता है । एक तेलहन । (१) पतंग । फर्तिंगा । बारदा | (२) टिड्ी । उ०--कटक सरह अस छूट ।-जायसी । बिशेष--वेदों में इस नदी का उल्लेख बहुत है और इसके तट | सखरदुज-संज्ञा ख्री० [ सं० श्यालजाया ] साले की स्त्री । पत्नी के भाई का देवा बहुत पवित्र माना गया है। पर वहाँ यह नदी की ख्यी । अनिश्चित सी है। बहुत से स्थछें में तो सिंध नदी के लिये | सरहटी-संज्ञा खी० [ सं० सर्पादी ] सर्पाक्षी नाम का पौधा । ही इसका प्रयोग जान पड़ता है। कुरुक्षेत्र के पास से होकर बहनेवाली मध्यदेशवाली सरस्वती के लिये इस दब्द का प्रयोग थोड़ी ही जगहों में हुआ है। कुछ विद्वानों का अनुसान है कि पारसियों के आवस्ता ग्रंथ से अफगानिस्तान की जिस हरख्वेती नदी का उल्लेख है वास्तव सें वही सूल सरस्वती है। पीछे पंजाब की नदी को यह नाम दिया गया । चरग्वेद में इस नदी के समुद्र में शिरने का उछेख है। पर पीछे की कथाओं में इसकी धारा लुप्त होकर भीतर भीतर श्रयाग से जाकर गंगा से मिलती हुई कही गई है। वेदों में सरस्वती नदियों की माता कहीं गई है और उसकी सात बहिनें बताई गई हैं । एक स्थान पर वह स्वर्ण मार्ग से बहती हुई और इत्रासुर का नारा करनेवाली कही गई है । वेद मंत्रों सें जहाँ देवता रूप में इसका आह्वान है वहाँ पूषा इंद और मरुतू आदि के साथ इसका संबंध है । कुछ मंत्रों में यह इडा और भारती के साथ तीन यज्ञ-देवियों में रखी गई है । चाजसनेयी संहिता में कथा है कि सरस्वती ने चाचा देवी के ट्ारा इंद्र को दाक्ति प्रदान की थी । आरो चलकर ब्राह्मण भंथों में सरस्वती वाग्देवी ही मान ली गई है। पुराणों में सरस्वती देवी ब्रह्मा की पुत्री और स्त्री दोनों कहीं. गई है भौर उसका चाइन हंस बताया गया है । महाभारत में एक स्थान पर सरस्वती को दक्ष-प्रजापति की क्या लिखा है। छक््मी आर सरस्वती देवी का बेर भी प्रसिद्ध है लक नकुछकद्‌ । चिशेष--पह पौधा दक्षिण के पहाड़ों आसाम बरमा और लका आदि में बहुत होता है। इसके पत्ते समवर्ती २ से ५ इंच तक लंबे तथा 9 से 9॥ इच तक चौड़े अंडाकार अनीदार और नुकीछे होते हैं । टहनियोँ के अंत में छोटे छोटे सफेद रंग के फठ आते हैं । बीज बारीक तथा तिकोने होते हैं। सरहटी स्वाद में कुछ खट्टी और कड़ची होती है। कहते हैं कि जब साँप और नेवे में युद्ध होता है तब नेवल्ा अपना विष उतारने के छिये इसे खाता है। इसी से हिंदुस्तान और सिहल आदि में इसकी जड़ साँप का विष उतारने की दवा समझी जाती है । इसकी छाल पत्ती और जड़ का काद़ा पुष्ट होता है और पेट के दद में भी दिया नज्ञाता है खरदता|-संज्ञा पुं० [ देश० ] खलिहान में फैला हुआ अनाज बुहारने का झाड़ । सरदइतनाएँ-क्रि० स० [ देश० ] अनाज को साफ करने के लिये _फटकना । पछोड़ना । सरहद्‌-संज्ञा खी० [फा० सरन-अ० दृद ] (१9 सीमा । (२) किपी भूमि की चौहद्दी निर्धास्ति करनेवाछी रेखा या चिह्न (३). सीकझा पर की भूमि । सीमांत । सिवान । ं खरहदी-वि० [ फा+ सरहद +-ई (परथ०) ] सरहद संबंधी । सीमा. लिवर घी हि गि | सबघी जेसे --सरहदी झगड़े ।




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