वाल्मीकि रामायण कोश: | Valmiki Ramayana Kosha

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Valmiki Ramayana Kosha by डॉ. रामकुमार राय - Dr. Ramkumar Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकेम्पन (४ [ अकस्पन हुये । इनके पुत्र का नाम दिलीप था । अशुमानू अपने पुत्र दिलीप को राज्य देकर रमणीय हिमवत्‌ पर्वत-शिखर पर चले गये, और वहाँ बत्तोस सहस् वर्षी तक कठिन तपस्या की (१ रे, ह-४) 1” 'सुधामिव , (है रे, हु) 1, 'तपोघन', (१ ४२, ४) । 'त्थवाशुमता वत्सलोकेश्प्रतिमतेजसा, (१ ४४, ९), 'राजपिणा गुणवत्ता महविसमतेजसा ! मत्तुल्यतपसा चेव क्षत्रधमस्थितेन च ॥' (१ ४, १०] 1 श्कम्पन, एक राक्षस का नाम है जिसने लड्ू/ मे जाकर रावण को राक्षसपुरी, जनस्थान, के विनाश का समाचार दिया था (३ ३१,१०२) । “रावण ने जब इससे इस प्रकार राक्षसो को विनाश करनेवाले का नाम पूछा तो इसने रावण से अभय वी याचना करते हुए राम के शारीरिक बल और पराक्रम का वर्णन किया । अन्त में राम के व के एकमाय उपाय के रूप में इसने रावण को सीता का अपहरण करने फा परामर्श दिया (३ ३, ३१९ १२-१४ २१ २२) । बाल्पुत्र अज्भद के हाथ से वद्धदप्ट्र वी मृत्यु के पश्चात्‌ रावण न अकम्पन को सेनापति बनाते हुये कहा. 'अकम्पन सम्पूर्ण अस्त्र दास्त्रो के ज्ञाता हैं । उन्हे युद्ध सदा ही प्रिय है, और वे सवंदा मेरी उन्नति चाहते हैं । वे राम और लक्ष्मण, तथा महावली सुप्रीव को भी पराश्त करते हुये नि प्तन्देद ही अन्य भयानक वानरी का भी सहार बरेंगे।' (६ ५४, १-४) *रथमास्पाय विपुल तप्तताखन भूपणमू । मेघा भो मेघवर्णइव मेघरवनमहार्वन 1”, (६ ५५, ७) । 'नहिं कम्पयितु शक्य सुरररपि महामूधे । अवम्पनस्ततस्तेपामा- दिव्य इव तेजसा 1, (६ ५४, ९) । 'स सिहोपचितस्कन्ध शार्दूलसम्विक्रम । तानुत्पातानचिन्त्यैब निजंगाम रणाजिरमु ॥, (६ ५४५, १२) ! जिस समय यह अन्य राक्षसी के साथ लख्ा से निकला उप्त समय ऐसा महानू कोलाहल हुआ मानों समुद्र मे हलचल मच गई और वानरों की विशाल सेना भी भयभीत हो गई (६ ५४, १३-१५) । इसने वानर सेना का भयकर सहार किया (६ ५५, २८) । धानरों द्वारा अनेक राक्षसो का वध कर दिये जाने पर अकम्पम अपने रथ की उन्हीं वानरों के बीच ले गया और उउ पर दूट पड़ा (६ ४५६, ८) । *रथिना वर, (६ ५६, ६) । पवत के रामान विशालकाय हनुमान को कपने सम्मुख उपस्यित देकर बकम्पन उन पर बाण कौ दर्पी शरने लगा (६ ५६, ११) । जब हंतुमान्‌ ने एक पव॑त उल्लाड वर उससे अकम्पन पर आक्रमण क्या तब अवम्पन ने थर्थ चद्ाकार वाणों से सम पर्वत को विदोर्ण बार दिया (६ ५५, १७ १८) 1 “अपने पर्वत के विदीर्ण हो जाने पर जब ज्नोष में भर कर हनुमान रादासो का सहार वरने लगे तब यीर अवम्पन नें उन्हें देखा और देह को विदीर्ण कर देनेवाले चौदह पैने बाणों से हनुमान को आहत




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