हिंदी रीती साहित्य | Hindi Reeti Sahitya

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Hindi Reeti Sahitya by भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ठभूमि रा जीवन के प्रति निवृत्ति श्वौर प्रवृत्ति दोनों ही पद्षों का महचव है । इस सध्ययुगीन भारत में हम ममुखतया उच्च चर्ग में प्रवृत्ति-प्ष को देखते हूँ । भारत में सध्ययुगीन सुगल शासन के परिणाम-स्वरूप हमें कई बातें जीवन में परिष्याप्त हुई दीखती हें । प्रथम तो एक केन्द्रीय सुद्दढ़ शासक होने से देश के भीतर तुलनात्मक दृष्टि से शान्ति का वायु-मरदल बन गया। द्वितीय ह्रस शान्ति के श्रचसर पर जीवन में कला श्रौर संस्कृति को विशेष महत्त्व प्राप्त हुआ । शिष्ट और सु सकृत व्यवहार का सम्मान बढ़ा । तीसरी बात यह है कि इसी शास्ति श्रौर सम्द्धि के परिणाम-स्वरूप कला-प्रेम श्र विज्ञासिता की भावना भी मखरता से जाप्रत हुई । जीवन में घम-चाहे वह संकीणं श्र में ही क्यों न हो--को प्रमुख स्थान सिला । इसके श्रतिरिक्त चौथी बात यदद है कि भाषा-साहित्य को राजाशों श्लौर सामन्तों का संरक्षण श्रौर झाश्रय सिला | इन सभी बातों का रीतिकालीन हिन्दी-काब्य पर प्रभाव परिलक्षित होता है । रीति-काव्य के सम्बन्ध में युग-चेतना के अनुसार काब्य-सम्बन्धी घारणाएँ बनती श्रौर बदलती रहती हैं । उपयुक्त युग-प्रयूत्तियों का प्रभाव रीति-साहित्य पर पढ़ा है इसमें सन्देह नहीं फिर भी झाज के बदले हुए दृष्टिकोण के शाघार पर हम रीति- काब्य श्रौर रीतिकालीन काव्य के सम्बन्ध में कुछ झमपूर्ण घारणाएँ भी देखते हैं जिनका निराकरण करना यहाँ श्रावश्यक है । रीतिकालीन काव्य के सम्बन्ध में दो प्रकार के सत हैं । एक उसे नितान्त देय श्र पतनोन्मुख काव्य कहकर उसके प्रति घ्रणा और दट्ष का भाव जगाता है श्रौर दूसरा उस पर श्रत्यधिक रीमककर केवल उसे ही काव्य मानता है श्रौर अन्य रचनाओओं--जेसे भक्ति श्र झाघुनिक युग की छृतियों को उत्तम काव्य में परिराणित नहीं करता । मेशा विचार है कि ये दोनों ही दृष्टिकोण पक्तपातफूर्ण हैं । एक प्रकार के काव्य के प्रति झ्नुराग आर दूसरे प्रकार के प्रति ढ् ष-भावना झालोचना की मूलभूत कमजोरी दै । आलोचना का वास्तविक काय उसके गुण श्र दोषों का निष्पक्त विवेचन है। टष का चश्मा लगाकर केवल दोष-ही-दोष देखना अनुचित है । रीतिकालीन काव्य के श्रन्तगंत जो दोष लगाये जाते हैं वे हैं--श्रश्लीलता समाज को प्रगति प्रदान करने की अक्षमता श्राश्रयदाता की प्रशंसा चमत्कार-प्रियता श्र रूद़विदिता रोति- कालीन समस्त काव्य को दृष्टि में रखकर जब हम इन दोषों पर विचार करते हद तो दम कद्द सकते हद कि ये समस्त दोष उस युग के काब्य या समस्त रीति-




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