आधुनिक राजस्थान का उत्थान | Aadhunik Rajasthan Ka Utthan
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.47 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आधुनिक राजस्थान का उत्यान दे
कहा, “भाई, खुदा की कसम, मैंने तेरी मा के पेर देखे है, मुह नहीं देखा ।”
मालिक भी नौकरों का ऐसा ही खयाल रखते थे ! वे उनके शादी ग़मी के अवसरों
पर खुद ही उनकी ज़रूरत पु लेते थे । नौकर को कु नहीं कहना पढ़ता था ।
मे लोग मालिक के घर मे अपना अधिकार समझते थे । पुराने नौकर हमे कभी कभी
अपत भी लगा नेते थे लेकिन मजाश दया कि मां, पिताजी या दादी कोई उन्हे
कुछ भी कह सकते । उल्टे हमें ही समझाते । इस सारे बर्ताव का. यह नतीजा
हीता था कि नौकर मालिक के छिए जान देता था जब कि आज का नौकर
मालिक की जान लेता है क्योकि आज मालिक के ध्यवहार में वह आत्मीयता
नहीं रही, खाली शोषण रह गया है ।
'छुपन्या काली
बेसे बचपन की सबसे पहली माद मुझे संवत् १६५६ वि० यानी १९०० ईस्वी
के भीषण अकाल की है जिसके गीत आज भी राजस्थान के देहात में *'छपन्या
काल फेर न आजि रे” की मार्मिक भाषा में गाये जाते हैं। उस समये शुद्ध के
झुड गरीब भर भूखे स्त्री पुरुष और बच्चे अन्न के लिए रोते बिलखते आते थे !
मेरा जी बहुत दुखता था और मेरी दयानु मा उन्हे अध्न वस्त्र बांटकर सुख
अनुभव करती थी ।
पाठशाला में
उसके बाद मुझे पाठशाला में बिठाया गया। सह मंदिर में होती थो
पुजारी जी हमारे गुरू थे । वे पंडित जवाहरजी के नाम से मदयहूर थे । शिक्षक
के नाते वे “जोशी जी कहलाते थे । उन दिनो फ़ीस यह थी कि बारी २ से
विद्यार्थी जोशीजी के लिए सीधा लाते थे । उसमें आटा, दाल, थी, मसाला
भौर गुड़ या शक्कर इतना सामान होता कि गुरुजी का काम आराम से चल जाता
था। नवद के रूप में उन्हें विद्यार्थी लोग या समाज थादी ब्याह के अवसरी
पर या गणेश चतुर्थी के दिन कुछ *भेंट देते थे । इस दिन विद्यार्थी शी लड़कियों
को तरह हाथ पेरों में मेंहदी ठगवाते ओर उन्हें यूज मिट्राइया वगैरा मिलती थी ।
जोशी जी के प्रति श्रद्धा इतनी थी. कि उनकी जूटन को प्रसाद समझ कर उसे
प्रात करने के लिए छात्रगण आपस में झगइते थे । पढ़ाई में अक्षरज्ञान, पहाड़
और गणित के ही विपय होते थे । मारपीट की परिपाटी तो सामान्य थी । देसे
हमारे नोशी जी में यह आदत नहीं थी । फिर भी जो लड़का पाठ्याला न आता
उसे *चौपाया' करके बुलाया जाता था । वह इस तरह कि चार एड़के अनपस्थित
छात्र के हाथ पेर पकड़ कर उठा लाते थे 1 डी
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