राहुल यात्रावली भाग 1 | Rahul Yatravali Vol - I

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Rahul Yatravali Vol - I by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी लद्दाख-यात्रा ) राजपूत हिन्दू थे । तक्शिला--वक्तशिला-जकशन के पास यह स्थान रावलपिडी श्रौर हज़ारा जिलों की सीमा पर है । यहाँके सभी निवासी मुसलमान हैं । किसी समय प्राचीन गान्धार देशकी यही राजधघानी थी । यहींके राजा- ने महाबीर सिकन्दर की झावभगत की थी । लेकिन तथ्तशिला का माहात्म्य राजधानी होने में नहीं दै । यह प्राचीन भारतके उन ज्योति स्वंभोंमें थी जहसि विद्याका प्रकाश सुदूर देशों तक फैलता था। गान्धार सन्तान शालातुरेय दाक्षीपुत्र महावैयाकरण पाणिनि को पैदा करनेवाली यही तक्तशिला थी । गोनर्दीय पातंजलि की विद्यायूमिं मी यही बतलाई जाती है । भगवान्‌ बुद्धके मुखारविन्दसे श्रनेक बार तक्तशिला विंद्यालयका जिस प्रकार नाम श्राया है उससे भी उसका प्राचीन वैमव लिद्ध है। बैसाली ( बनिया बसाढ़ ज़िला मुजफ्फरपुर )की ब्म्बापाली तथा मगधरान बविम्विसारके पुतर.प्रख्यात चिंकित्तक जीवक- ने इसो विद्यालयमें शिक्षा प्रास की थी । कोई समय था जब कि काशिराज ब्रह्मदचका पुत्र भी बनारस से चलकर यहाँ पढ़नेके लिए झ्ाया था । लेकिन आज यद्द स्थान उजाड़ और बीरान है । दूर तक जगह जगह भीट मिलते हैं । इन्हे खोद कर पुरातत्त्व-विमागने बहुत- सी चीज़ प्राप्त की है । ये खुदाइयाँ भिड़ सिरसुख सिरकप जौलियाँ माडा सुरादू आदि स्थानों में हुई हैं । सम्राटू कनिष्क का धर्मराजिका स्वूप अब भी चिडतोपके नामसे मौजूद है । ब्द्ध सुसलमान चौकीदार ने बड़े चावसे कहा बुतोंका तोढ़ना तो सवाल दे । लेकिन दम तो नौकर हैं । इन निकली हुई मूर्तियोंको तोड़नेपर हमारी नौकरी ही चली जायगी । कितना अफसोस है । जिनके पू्व॑जों हीने किसी समय हन सारे सभ्यता-केन्द्रोंको स्थापित किया था | श्राज वे उज्ञानान्धकार- में पड़े हुए इन चिह्लॉपर कुछ मी गव नहीं करते । तक्षशिलाके इन बिखरे हुए विस्ट्रत चिह्लोंको देखते दशंकके मनमें अद्भुत भाव पैदा होने लगते हैं ।




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