प्रेमकान्ता सन्तति भाग ५ | Prem Kanta Santati Part5
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.74 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आशुकवि शम्भुप्रसाद उपाध्याय - Ashukavi Shambhuprasad Upadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ _ पाँचवाँ सार ] रंगिनी-श्ाप कया चाहते हैं महात्मा यह तो बता कुमा५-में सिवाय छुटकारे के और कुछ भी नहीं चाहता । रंगिनी-यह्द तो इस सपय श्रसस्मव है -मगर घबड़ाइए मत दो एक रोज़ सब्र के साथ श्राप इसों मकान में-पक सुरक्षित स्थानपर रहिए में कोरिश करके श्ापकों तिलस्मके बाहर कर दूँगी । तरड्रिगी-मगर आप तिलस्म तोड़े विनाही निकट ज्ञाइएगा£ ... कुमार--नहीं बाबा सुने तिलस्म तोड़ना नहीं है पर- मात्मा ने घुमे सब कुछ दे रक्खा है। अगर में उसी पर सन्तोष करके रहें तो भी कई पुश्तके लिए काफी हे । _. रक्िनी-आप गठती करते हैं -राजञाओंको भी कहीं स- न्तोष करके रहदना होता है? इसके जवाब में कुमार कुछ कहा- ही चाहते थे इतने में जिस दरवाजे से रंगिनो आई थी उसके बाहर से कुछ घम्माके की झावाज़ झाई जिसको ख़ुन- तेही तेजी के साथ रडिनी बाहर चली गई उसको इस तरह जाते देख कुमार भी उठखड़े इए । तरंगिनी ने रो? नी यु करने के लिए हाथ बढ़ायाद्दी था इतनेमें बाहरसे श्रावाज श्राई देखो तो बदन ऐसी शी दिल््लगी कहीं द्दोती है ? यह सुनते ही रोशनी को बुसाए बिना तरंथिनी भी बाहर व्वल्ली गई। कुमार रक-टकी बाँघे दरवाजे की तरफ देखने लगे | उन्हे उन दोनों के रंग-ढंगसे कुछ शकभों पेदा हुचा
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Vishal
at 2018-12-29 03:13:10"Please upload part 4"