मानव - समाज | Manav Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव-समाज ] समाजका विकास ्ञाजके भी वनमानुष सीधे खड़े हो सकते हैं श्योर सिफ़ -श्पने पैरॉपर खड़े हो सकते हैं किन्तु ज़रूरत होनेपर ही श्र वह भी मनुष्य जैसे इत्मीनानके साथ नहीं । जब हाथ इस तरद शरीरके भार- को संभालनेसे स्वतंत्र हो गया तो उसे दूसरे कामोंमें लगाया जा सकता था वनमानुषोंमें भी पैरसे हाथके काममें भेद देखा जाता है। इक्षपर चढ़ते वक्त हाथ और उसकी शअँगुलियाँ जिस तरदद पकड़ने का काम करती हैं पिछले पैर उसी तरह नहीं करते । वनमानुष हाथोंसे फल तोड़ने और जमा करनेका काम लेता है यह काम पिछले पैरोंसे नहीं लिया जा सकता । कितने ही वानर हाथोंसे इच्तोंमें घोंतसला-सा बनाते हैं । चिम्पत्जी (वनमानुप) धूप-वर्षासे बचनेके लिये ब्रक्तोंकी डालियॉपर छुत-सी तैयार करता है । श्रपने हाथोंमें डंडा पकड़कर दुश्मनसे मुकाविला करता है हाथसे फल या पत्थर मारना भी जानता है । वनमानुपसे मसानुषरके हाथमें जो क्रियानिपुणता देखी जाती है वह हजारों वर्पोके परिश्रम का परिणाम है | चनमानुष श्रौर मानुपके हाथकी दृड्ियों जोड़ों शरीर नसोंकी तुलना करनेपर मालूम होगा कि दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है तो भी विकासमें सबसे पिछड़ा जड़ली मनुष्य भी हाथसे इतने काम ले सकता है जो कि चनमानुपकी शक्तिसे वाहर है | श्राज तक कोई वनमानुप पत्थरका भद्द से भद्दा चाकू थी नहीं तैयार करते देखा गया | हमारे पूर्वजोंके बनमानुपसे मानुषके रूपें परिवर्तित होते वक्त के पहलेके- लाख वर्षों में प्रगति बहुत मन्द रही इसमें तो सन्देह नहीं है । जितने समयमें मानवने चकमक पत्थरका पढ़िला हथियार तैयार किया. होगा वदद हमारे ऐतिहासिक समयसे कई गुना ज्यादा रहा होगा । लेकिन एक वार जब हाथ मुक्त हो गया तो रास्ता साफ़ था वदद दथियारोंको वना सकता मकान तैयार कर सकता सितार




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