भक्ति दर्शन | Bhakti Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ काल में संभव नहीं अत रामानुज के मत में केवल विदेह-मुक्ति ही मान्य है। रामानुज ने इंय्वर प्राप्ति के दो मःभ--शिर और प्रपत्ति बतलाये हूं और यह भी बतलाया है कि ईंदवर-प्राप्ति जब एक मागें से न होसके तो दूसरे का अवलंब लेना चाहिए। इन दो सिद्धान्तों के कारण रामानुज के अनुयायियों में बड़ा मत-भेद उत्पन्न होगया था। कुछ लोग तो यह कहते थे कि प्रपत्तिमार्ग से इंदवर की प्राप्ति वुक्य हो सकती है. गर इसका अवरंब तभी लॉ ही सकती हैं पर इसका अवलंब तभी लेना चाहिए जब जीव भूक्ति-मागं का आश्रय लने में असमर्थ हो | दूसरे कुछ लोग कहते थे कि इंइ्वर-प्राप्ति का एकमात्र उपाय प्रपत्ति-मा्ग हैं। भक्तिसाग में भक्त के कृतिपरायण होने की आवरयकता मानी गई हे और प्रपत्ति- नाक लाइव हिलविद पक दपचय। कं मार्ग में वह इंइवर का दारणागत होकर अपने को उसकी इच्छा और दया पर छोड़ देता हूं।| उदाहरण के लिए मकंटन्याय का आश्रय लिया गया हूं। वानर-शिक्ष अपनी माँ के दारीर से चिपटा रहता हूं और वह उसे जहाँ चाहती हे लजाती हूं तथा उसकी रक्षा करती हू फिरभी बच्चा अपनी माँ को पकड़े रहता हें। यही अवस्था भक्तों की होती हे । वे इंइवरशरणागत होते हूं परन्तु स्वयं उनको भी मकंटवत्‌ उद्योगी रहना पड़ता हे। प्रपत्तिमार्ग के अनुयायियों के संबंध में मार्जारन्याय का आश्रय लिया जाता हे। मार्जारी अपने शिशु को मुख में दबा कर अपनी इच्छानुसार लिए फिरती है। दिशु मातृनिभंर एवं निश्चित होता है। प्रपत्तिमा्गियों की अवस्था मार्जार- वर्तू होती है। वे अपने को इंदवर की अनूकम्पा पर छोड़ देते हूं और उसी पर अवलंबित रहते हूं। इससे यह निष्कर्ष निकला कि भक्ति- मार्ग प्रपत्तिमा्ग की अपेक्षा सरल नहीं है। इस कारण इस संप्रदाय के लोगों में और भी अनेक भेद होगये थे । भक्तिमाग के अनुूयायियों का आग्रह था कि परम मंत्र के अधिकारी केवल ब्राह्मण हैं दूसरे वर्णवालों को ओउम्‌ -रहित मंत्र का ही उपदेश दिया जा सकता हें। प्रपत्तिमार्गी इस सिद्धान्त के विरोधी थे। वे




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