प्राचीन भारत में नगर तथा नगर - जीवन | Prachiin Bhaarat Me Nagar Tathaa Nagar Jiivan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
164.88 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नगरों का प्रादुर्भाव तथा प्रारस्भिक विकास दे
भग्नावशेषों का प्रतिनिधित्व बीस फीट ऊँचे एक टीले के द्वारा किया जाता है, जिसे
“माउण्ड एफ' की संज्ञा दी जाती है । प्रथम वर्ग में एक ही प्रकार के बने हुए कुछ
_ छोटे घर आते हैं। इनका निर्माण दो पंक्तियों में किया गया था। ये घर दुर्ग के
उत्तर की दिशा में उसके ठीक समीप वर्तमान थे । दूसरे वर्ग का निर्माण इन घरों
के उत्तर की ओर किया गया था। इसमें कुछ चबूतरे आते हैं, जिन पर आटा
पीसने का कार्य लिया जाता था। इसके आगे उत्तर दिशा में तृतीय वर्गे का निर्माण
किया गया था। इसमें दो पंक्तियों में निमित अन्नागार आते थे।
प्रथम वर्ग के निर्माण में आने वाले लघु भवन (जो कि दो पंक्तियों में बेठे
हुए थे) आयताकार थे। प्रथम पंक्ति में सात तथा द्वितीय पंक्ति में आठ भवन
बने हुए थे। इन घरों की विन्यास-योजना एक प्रकार की है। प्रत्येक के चतुर्दिक्
एक चहारदीवारी मिलती है। वे लगभग ४ फीट चौड़ी गली के द्वारा एक-दूसरे
से विभक्त हैं। प्रत्येक घर की लम्बाई ५६ फीट तथा चौड़ाई २४ फीट है। उनके
फर्श प्राय: ईंटों के बने थे । प्रत्येक घर में एक आँगन तथा तीन कमरों के होने के
प्रमाण सिकते हैं। उनके निर्माण की सदृशता यह व्यक्त करती है कि वे राजकीय
घर हैं। उनके समीप ही लगभग १६ भटिय्यों के होने के प्रमाण मिलते हैं।
कण्डी तथा लकड़ी के कोयले से उनमें आग जलाने का काम लिया जाता था । घौंकनी
से आग तेज की जाती थी । इससे लगता है कि इन घरों में मजदूर रहते थे, जिनसे
सरकारी काम लिया जाता था।
श्रमिकों के घरों को पृथक स्थान में (विशेष रूप से नगर के बाहर) बनाने की
परम्परा पढिचमी देशों में भी वर्तमान थी । उदाहरणार्थ, तेठ-एल-अमर्ना के सीमा-
प्रान्त में कब्र बनाने वालों के घर बने हुए थे। इसी प्रकार १६०० ई० एू० में देर-
एल-मदीनंह में समाधि-निर्माताओं के घर इसके उपकण्ठ पर निर्मित किये गये थे ॥.
णिज़ेह में भी पिरेसिड बनाने वालों के गृह एक ही स्थान पर स्थित थे। इन श्रमिकों
से सरकारी कामों में बेगार भी लिया जाता था । सम्भव है कि इस प्रकार का श्रम-
सद्धठन हड़प्पा में भी प्रचलित रहा हो। दुर्ग के समीप मजदूरों के घरों का बना
होना इस बात को व्यक्त करता है कि सम्भवत: हड़प्पा में भी राज्य उनसे कुछ.
सीमा तक बेगार लेता था।'
दूसरे वर्ग में आने वाले श्रमिकों के चबूतरे (जिन पर आटा पीसने का कार्य
लिया जाता था) संख्या में १८ हैं। अट्ठारहवें चबूतरे का पता १९४६ ई० में
लगा था। इसका व्यास ग्यारह फीट के ।(लगभग है। यह एक केन्द्रीय चार वृत्तों
१. ह्वीलर, दी इण्डस सिविलाइज़ेशन, पृष्ठ २७-३०। .
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