आयु - वर्ग एवं शिक्षा मनोविज्ञान | Aayu Varga Avam Shiksha Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.37 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ए. वी. येत्रोव्स्की - A. V. Yetrovski
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इतनी ही त्रुटिपूर्ण दिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र मे प्रचलित समाजमूलक धारा भी थी। ऊपरी अतरों के बावजूद य॑ दोनों ही सिद्धात कई बातो मे एक दूसरे से भिलते-जुलते हैं। समाजमूलक घास के समर्थकों के अनुसार बच्चे के विकास मे अपरिहार्यत निर्णायक भूमिका परिवंश वी होती है और इसलिए मनुष्य का अध्ययन करने क॑ लिए उसके परिवेश की बनावट का विस्लेपण करना पर्याप्त है. जैसा परिवेश होगा वैसा ही मनुष्य का व्यक्तित्व उसके आचरण का ढंग और उसके विकास का मार्ग भी होगा। जिस प्रकार जीवमूलकता सिद्धात व्यक्ति की फिया शीलता को नकारता था और आचरण तथा विकास को आनुवदिक पुर्वप्रवणता की निप्यत्ति का परिचायक मानता था. वैसे ही समाज मूलक्तावादी भी व्यक्ति मे स्वतन नियाशीलता की कोई गुजायण नहीं दंखते थे और सब कुछ सामाजिक परिवेश का प्रभाव बतात॑ थे। फलस्वरूप यह अस्पप्ट ही बना रहा कि किस प्रकार एक ही तरह के सामाजिक परिवेश में अनेक लक्षणी की दृष्टि से सर्वथा भिन्न व्यप्टियो का निर्माण होता है। यह भी अस्पष्ठ था कि विभिन्न सामाजिक परि वंशो मे बहुत ही समान स्वभाव और आचार-विचारवाले व्यक्ति क्यो पैदा होते हैं। इस प्रकार दिल्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र म प्रचलित समाज मूलक धारा के मुख्य वैचारिक और सैद्धातिक दोप थे - विकास वे प्रति यानिक्तापरक उपागम ओर व्यक्ति की स्वतन कियाशीलता तथा व्यक्तित्व निर्माण के द्वद्वात्मक अतर्विरोधी की उपेक्षा। यह धारा भी चौथे दशक मे ही सोवियत मनोविज्ञानियों तथा शिक्षाविदो की आनाचना का लक्ष्य बन गयी थी। ने जीवमूलकतावादी और न समाजमूलकतावादी ही. कोई मी बच्चे वे मानसिक विकास के स्रोतो तथा क्ियाविधियों की सही जाली न दे सके। के सत्र में बहुत शोध कार्य हुआ और ट्रर रद की फोर से एक किये गये वे आधुनिक मनायिशाट दी अफ्ियश दर बल गय डी इसी काल मे अनेक नयी मनायैड्लिश दे पथ सबलस्गाय भी जमी जिन्होंने अपना भला श्राफ्र ले सं साडि के जाप ्ं
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