विश्राम सागर | Visram Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न दें दें: दंड र््शरंडटेस्रटटेट 2 है -+ु) विशामसायर 25 3 दे पल हिंदुदुखर, -मूषकमिनकीसी * रवुपति प्यानकरन पिनकीसी £« सर्देभूदु... पादप मठुऋतुमी # कलिमल भजन हेतु मृन्युसी विरंति विवेक दंपति मोहनीसी * सदसतोष फीर दोहनीसी न जॉफिन्शुक' भवभीम युसासी « पितर तरण हरिभक्ति सुपासी सभुपद्‌:मीति बढावनिं ऐसी # अतुदिनिलाभ लोभकह जसी रामहिप्रिय,जिमि कारुऊजासी * भक्तिपुतिमत मज्ञजरासी > म्ेंसें- श्रकता के सवन, महल श्रोता घास । जि मेडल लेखकके करन, सह़्ल दो तेहि ठास ॥ दि तति श्रीपिश्रामसायरसवमतथागरमन्थउजागरशॉरबुनायदास (+ ी शमसनेहीकृतवन्दनावर्सनोंनामदितायो5्याय, ॥ २ ॥ 5४ दो५'भगवत चरित पियूपबेर, नित सेंवे जो कोइ । | 7 <५४ भन्तकासके समय में, तेहि उदवबेग न होइ ॥ ् सुर्त 'हुर्कियां कहां हखदाता * सुनो प्रथम गुरुमहिमा तातां गम गुर्दे बहा गुरू विष्णु पुरारी + गुरु परम बन दुखहारी [+ शुरुशरणागित जो कोई चावि # बहीरि ने सो चौंरासी जानें है? शुरुकूषाल अंगणित' गति दाता + युरूकृपा छूटे यमनाता मेहाझधम” पापी नर होई * गुर शरणागत आते सोई [+ ् हें ,नरक परें नहिं प्रानी # जो गुरु वचन लेईं फुर मानी है एक इतिहास पुरानी * मनलगाय सच प्रुनियर ज्ञानी (४ ;रहा श्रघिक यकनीतय, करें ठगाहीं घन नि । १ - « लीम *“ श्तासु * . सारीच/शतिनिदेयकपर्टीकुंटिल॥ ् 'तैहि यंफदिन मन,कॉन्ह विचास * मोसम पतित न कोउ ससारा (+ दर जते? घरयों देह जग श्राई # पाप करत सर्व उर्मिरि वितार हर उफनतिम्तम्ररुसरुमतपन्पन््रश्परनक भून्क पं 0 थे झा रस पथ | न रन री दर शी इने'पराव:! कॉमि गति होर यहि विधि विदिवशीत कद. ट््र पलसम्तव्रगलकरुसनपन्दन्फन्णदा ऋ प्र कर




User Reviews

  • RDX

    at 2019-12-31 12:37:22
    Rated : 8 out of 10 stars.
    Baba Shri raghunath das ke bare men kuch jankari hai aapko
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