गांधी मानस | Gandhi Manas

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Gandhi Manas by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भू० पू० अध्यक्ष पूज्य गोरवामी गणेशद्त्तजी महाराज - कविवर श्री नटवरलालजी रनेही का गांधी मानस देखा | गांधी युग का यह एक श्मिनव मौलिक महा काव्य है । हिन्दी में चन्द वरदाइ ने महा काव्यों कि जिस परम्परा को जन्म दिया था वह जायती तुलसी प्रताद हरियोष मैथिलीशरण की वर वाणी से प्रस्फुटित होती हुई स्नेही के गांधी मानती के रूप में अवतरित हुई सु्के प्रतीत हो रहीं है | न्तज्वाला और विदन। के कवि हृदय को पूर्ण रूप से अभि- व्यक्क होने के लिए गांधी मानस ही एक मात्र आधार हो सकता था | गांधी सानस में गीता के श्राजीवन अनुगामी बापूजी के आदशे जीवन तर सत्य-अड्धिसा के श्ादर्शों की पूर्ण झ्लौकी मिल जाती है । जिस प्रकार राम नाम के साथ तुलसी का राम चारित मानस अमर है उसी प्रकार गांधी के नाम के साथ स्नेह का गांधी सानस भी अमर होगा यहीं मेरी आत्मिक झुम कामना है । शुद-छ४ ४१९ पणकुटी नागदा हि क७ है र्ज कि माननाय सठ गावददास्जी ( भूतपूर्व अध्यक्ष - हिन्दी -साहित्य -सस्मेखल ) श्री नटवरल्ालजी स्नेह के गांधी मानती के कुछ अंश को मैंने जी च्पै # 3 च०७ ही #) सुना । रचना सुन्दर है । ...गांघी-साहित्य में गांधी मानस भी श्पना उचित स्थान पावे यह मेरी कामना है । २०-३े-भ० के नई दिल्ली बल ट हु न




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