आज के उर्दू शायर और उनकी शायरी | Aj Ke Urdu Shayer Aur Unki Shayeri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द जोश सच्चा पथप्रदर्थन करता । श्रतएव ब्रगन्ति को, जिसका वास्तविक झ सामाजिक तया राजनतिक बन परिवतेन < दया आन 'राजनविक अल. स्वचन्त्ा < झ्रर्यो फ तठया राजनतिक परिवर्तन है, देदा की केवल राजनतिक स्ववन्त्रा के झवा मे लिया गया घ्ीर दिद्वरोही घायर लोग” को धायरे-इंक्रिलाव' (क्ांठिकारी अर उपाधि ड कु लाँ डे “पेड” से जन इुक़्चालां एक॒हुद तक कवि) की उपाधि दी गई (हालाँकि 'लोय' से पहले इववाल एक हुद ठक न्ान्ति नल सही नि पी पास यम न्वाच्ति का सट्टा बाघ दे ुक थे हे पं र कक जोरों का ययोचितत साहित्यिक स्वान भाँकनें में, सरदार जाफ़री' के कयनानुसार सब ले वड़ी चुक “ायरे-इंक्रिलाव' की उपाधि के कारण होती हैं । न्झ्स्पलि कम डी इस -. ड समालोंचकों न ५, पिचारघारा रकन्ट कि मागे पर क्तति का बाव्द श्राज के 'लोचकों को विचारवारा को गलत माग पर हि घ्प् नीम डाल देता है, श्र वे 'घोय से ऐसी आयाएं सम्बद्ध कर लेने है जो उनकी लद्ताइ, श्ञार व “जाय ये एसा झायाएं सम्वद्ध कर लन हू जा रन ७ यायरी पुरी नहीं कर सकती 1 “लोन की प्रत्यस तया सीवी-सादी एजीटेसनल (न्ात्दोलदात्नक) * वदिताओं को, जिन्होंने निःचंदेह अपने युग में बहुत बड़ा छार्य 2. ककया अस से इ्फेदिकार दि कविताओं प्रिय कानान गया । यह मल ्ं छार्य किया; भूल से ब्ंतिकारी कविताओं का नान दिया गया । यह भझुल केवल ही नदी जोड़” नली नि भरा न्नातिवादी कवितानं को परलने में भी यही सुल की गई हैं । न्ांतिकारी चोरी-छुप्पे वर्दी, लाखों ऊवानों पर झाई श्रौर वहुवन्से लोग स्टेज पर कवितार्वे न होने पर भी इन कविताओं ने आाज की न्ंतिकारी कविता के लिए मार्ग समतल फिया है, भ्रौर उट्ट में कीं सांग्रामिक (८2६) कायरी की नींव डाली की यह घन-गरज, पहाड़ी मरने का सा प्रवाह तया 1 ता] /न $ | यु 0 नी[+ उंट्ें के किसी झायर को घात नहीं हुई 1 झपनी इन बविताों हारा उन्होंने राष्ट्र को धंग्रेजी सान्नाज्य के विरुद्ध उमारा; प्रतिल्यावादी संस्वाश्रों का भंडा- फोड़ स्या, सूटता, धर्म-सम्दन्वी उत्नाद, अन्वविश्वास आर परम्परागत नैचिक्ता की उंजीरें सहू गमं हो जाता है श्रौर अपने देय, झपनी जाति, धपनी सम्यतता, रथ उमप्दा “ दगसा निक.. जाठा झपने साहित्य ठया कला से हमारा शम दुगना हो जाता है । काने की प्रेरणा दी । उनके श्रव्ययन 2 काटने का नरुखा दा । उनकं अष्ययन ने झाण भी हमारा मद ता, सच्झति भर र्‌




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