अलंकार कौमुदी | Alankar kaumudi
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.99 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम उल्लास ण्
पंछकों से अधर पर, अधर से छाती पर, इत्यादि बूंदी
के गिरने का क्रम बताने से 'निश्वलता' व्यखित होती है ।
यदि शरीर निश्चल न होता, हिठता डुढता रहता तो बूँढों के
शिरने का यद्द क्रम कदापि न होता । दिलने डूलने के कारण
पलकों से बूँठें सीधी नीचे अधर पर न गिरकर और किसी
अड्ड में गिर सकती थीं ।
इन्हीं विशेषणों से भगवती पार्वती का “अलौकिक सौन्दर्य'
भी व्यजित होता है । 'ठहरे' कहने से पठकों की घनता प्रतीत
होती है| घने पछकों पर बूँद ठहर सकती है, विरलों पर
नहीं । 'कुछ ठहरे' ऐसा कदने से पलकों की स्निग्घता (चिकना-
पन) व्यखित होती है । चिकनी चीज पर पानी अधिक देर तक
नहीं ठदर सकता । जो वस्तु ऊपर से ठहर २ कर गिरती हे
उसका वेग कुछ क्रम हो जाता है । यहा भी आकाश से गिरी
हुई बूँढों का वेग पलकों पर ठहरने से कुछ कम हो गया है,
परन्तु फिर भी उन्होंने पठकों से गिर कर अधर को पीड़ित
किया । इससे अधर का अत्यन्त सोकुमाय वब्यज्ञित होता
है । इस प्रकार कई जगदद ठहदरने पर यद्यपि बूँढों का चेग
अत्यन्त न्यून हो गया है तथापि व स्तनों पर गिर कर चूर चूर
हो ज्ञाती हैं । इससे स्तनों का ' अति काठिन्य' ब्यख़ित होता
है । कमर के चल छाती आगे करके वैठने पर भी पेट की सल-
चटो में बूँदों के रुकने से उन ( सलवदों ) की 'स्पष्टता'
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