आयुर्वेद का इतिहास भाग 1 | Ayurveda ka itihasa part 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यांय | सष्टि्चक्र का झारम्भ [५ झ्ोषधि भ्रादि की उतत्ति में भी यही पूर्वावस्था_थी । पराशर के वृक्ष भ्रायुवेंद में लिखा है-- आपों दि कललें भूत्वा यत्‌ पिंणडस्थानुकं भवेत्‌ । तदेवं. व्यूदमानत्वात्‌ वीजत्वमघिगच्छति ॥ ओजोत्पतिकायड वी जोत्पत्तिसूत्री याध्याय [ प्रथम ]] । इंद्बर प्रेरणा से प्रारम्भिक बीज जल प्रौर पृथ्वी में कलल रूप से उत्पलत हुए । योगदर्शन पर व्यासभाष्य ३1१४ में पत्चशिख का प्राचीन वचन उद्बूत है जलमभुस्यो पारिंशामिकं रसादिवैश्वरूप्यं स्थावरेषु दृष्ट तथा स्था- बराणां जज्ञमेषु जज्ञमानां स्थावरेषु । शारीरोपनिषद्‌ में लिखा है-- आप एवं कललीभूत॑ भवति । पिरड तदा सब्जज्ञायते । बायुपुराण भच्याय में भी इसी तत्व का तिदर्शन है. ये परस्तादपां स्तोका पन्ना प्रथिवी तले । अअपां भूमेश्च संयोगादू ओषध्यस्तासु चामवन्‌ ॥१३२॥ इस सम्पूर्ण क्रिया का इतिवृत्त विस्तरभय से यहाँ नहीं लिखा जाता । शास्त्रों में भ्रण्डज भर स्वेदज की उत्पत्ति का भी श्रत्यन्त विषद वर्णन है । चारों जातियों का वर्णन करते. हुए महाभारत अनुशासनपर्व श्रष्याय २२७ में महेदवर ज़ी उसका. संकेत करते दें. एवं चतुर्विधां जातिमात्मा सखत्य तिष्ठति । स्पर्शनैकेन्द्रियेशात्मा तिष्ठत्युद्धिजेषु वे ॥॥१३॥। शरीरस्पशेरूपाम्यां स्वेदजेष्यपि. तिष्ठति । पब्चमिश्चेन्द्रियद्वारै जीव न्त्यरडजरायुजञा ॥१४॥ तथा भूम्यम्बुसंयोगादू भवन्ट्युद्धिजा प्रिये । शीतोष्णयोस्तु संयोगाज्जायन्ते स्वेदजा मिये । अंडजाश्चापि जायन्ते संयोगात्‌ क्लेद बीजयोः ॥ १५॥ शुक्लशोशितसंयोगात्‌ संभवन्ति . जरायुजा 1१६ अर्थात--्राणियों को चारों जातियों में भात्मा.. रहता है 1. जद्धिजों में ब्ात्मा केवल स्प्शेन्द्रिय से काम करत। है । स्वेदरजों में बासीर स्पषं रूप से 1 गजल एशि८ सो० बंगाल लेट्स भाग १६ संख्या १ सन १३३० । निस्पेन्दनांथ सरकार का लेख इ० १२६ ।




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