मारवाड़ का इतिहास द्वितीय भाग | Marwad Ka Itihas Dwitiya Bhag
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.92 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३९. महाराजा सानसिंहजी
यह मद्दाराजा विजयसिंहजी के पौत्र श्र गुमानासिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म
वि० सं० १८३९ की माघ छुदि ११ (ई० स९ १७८३ की १३ फ़रवरी ) को हुआ
था । पहले. लिखा जा चुका है कि बि० सं० १८५० के आषाढ़ ( ह० स० १७९३
की जुलाई ) में जिस समय इनके चचेरे भाई भीमसिंहजी गद्दी पर बैठे, उस समय
यह जोधपुर से लौटकर, इधर-उधर के गाँवों को लूटते हुए, जालोर चले गए और
वहां के दुर्ग का आश्रय लेकर महाराजा मीमसिंहजी की मेजी हुई सेना का मुकाबला
करने लगे | वि० सं० १८६० के कार्तिक ( ई० स० १८०३ के अक्टोबर ) में
महाराजा मीमसिंहजी का स्वरगवास हो गया । उनके पीछे पुत्र न होगे के कारण उनकी
जालोर की सेना के सेनापतियों-भंडारी गंगाराम और सिंधी इन्द्रराज ने युद्ध बंद कर
मानसिंहजी से जोधपुर चलने श्रौर वंशक्रमागत राज्य का अधिकार श्रहण करने की
प्रार्थना की ' । इसीके अलुसार जिस समय यह जालोर से रवाना होकर सालावास पहुँने,
१. मद्दाराजा विजयसिंहजी की पासवान (उपपल्नी)-गुलाबराय ने झपने पुत्र तेजसिंद के
मर जाने पर मानसिंदजी को झपने पास रखलिया था । परन्तु मद्दाराजा विजयसिंदजी के
मारवाड़ के सरदारों को समसकाने के लिये जाने पर जब, वि० सं० १८४४९. के वेशाख
( ईै० स० १७६२ के झप्रेल) में, उनके पौत्र ( फूतैसिंदजी के दत्तक पुत्र ) भीमसिंहजी ने
जोधपुर के किले पर अधिकार करलिया, तब शेरसिंह ( जिसको पासवान के कदने से
महाराज अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे ) और मानसिंहजी जालोर के किले में
भेज दिए; गए. । अगले वर्ष शेरसिंह तो लोट कर जोधपुर चला आया; परन्चु मानसिंहजी
ने झपना निवास वहीं रकक््खा । कु दिन बाद महाराजा विजयसिंदजी ने वह प्रान्त इन्हें
' जागीर में दे दिया । इसके बाद जब महाराजा भीमरसिंदजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे,
.' तब उन्होंने सानसिंदजी को पकड़ने के लिये एक सेना मेज दी | इसी के घिराव से
'तग झाकर वि० स० श्प६० की वेशाख सुदि १ (ई० सच १८०३ की २२ अप्रेज) को
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