मारवाड़ का इतिहास द्वितीय भाग | Marwad Ka Itihas Dwitiya Bhag

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Marwad Ka Itihas Dwitiya Bhag by पण्डित विश्वेश्चरनाथ रेड - pandit vishveshcharnath Red

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३९. महाराजा सानसिंहजी यह मद्दाराजा विजयसिंहजी के पौत्र श्र गुमानासिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १८३९ की माघ छुदि ११ (ई० स९ १७८३ की १३ फ़रवरी ) को हुआ था । पहले. लिखा जा चुका है कि बि० सं० १८५० के आषाढ़ ( ह० स० १७९३ की जुलाई ) में जिस समय इनके चचेरे भाई भीमसिंहजी गद्दी पर बैठे, उस समय यह जोधपुर से लौटकर, इधर-उधर के गाँवों को लूटते हुए, जालोर चले गए और वहां के दुर्ग का आश्रय लेकर महाराजा मीमसिंहजी की मेजी हुई सेना का मुकाबला करने लगे | वि० सं० १८६० के कार्तिक ( ई० स० १८०३ के अक्टोबर ) में महाराजा मीमसिंहजी का स्वरगवास हो गया । उनके पीछे पुत्र न होगे के कारण उनकी जालोर की सेना के सेनापतियों-भंडारी गंगाराम और सिंधी इन्द्रराज ने युद्ध बंद कर मानसिंहजी से जोधपुर चलने श्रौर वंशक्रमागत राज्य का अधिकार श्रहण करने की प्रार्थना की ' । इसीके अलुसार जिस समय यह जालोर से रवाना होकर सालावास पहुँने, १. मद्दाराजा विजयसिंहजी की पासवान (उपपल्नी)-गुलाबराय ने झपने पुत्र तेजसिंद के मर जाने पर मानसिंदजी को झपने पास रखलिया था । परन्तु मद्दाराजा विजयसिंदजी के मारवाड़ के सरदारों को समसकाने के लिये जाने पर जब, वि० सं० १८४४९. के वेशाख ( ईै० स० १७६२ के झप्रेल) में, उनके पौत्र ( फूतैसिंदजी के दत्तक पुत्र ) भीमसिंहजी ने जोधपुर के किले पर अधिकार करलिया, तब शेरसिंह ( जिसको पासवान के कदने से महाराज अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे ) और मानसिंहजी जालोर के किले में भेज दिए; गए. । अगले वर्ष शेरसिंह तो लोट कर जोधपुर चला आया; परन्चु मानसिंहजी ने झपना निवास वहीं रकक्‍्खा । कु दिन बाद महाराजा विजयसिंदजी ने वह प्रान्त इन्हें ' जागीर में दे दिया । इसके बाद जब महाराजा भीमरसिंदजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे, .' तब उन्होंने सानसिंदजी को पकड़ने के लिये एक सेना मेज दी | इसी के घिराव से 'तग झाकर वि० स० श्प६० की वेशाख सुदि १ (ई० सच १८०३ की २२ अप्रेज) को ४०१




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