योग - शास्त्र | Yoga Shastr

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Yoga Shastr  by आचार्य हेमचन्द - Achary Hemchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक परिश्योलन १ सभ्यता अरण्य--जंगल में श्रवतरित हुई है। ग्रौर यह है भी सत्य । चयोंकि भारत का कोई भी पहाड़ वन एवं गुफा योग एवं आध्याहिमिक साधना से थुन्य नहीं मिलेगी । इससे यह कहना उपयुक्त ही है कि योग को श्राविष्कृत एवं विकर्सित करने का श्रेय भारत को ही है । पाइचात्य विद्वाद्‌ भी इस वात को स्वीकार करते हैं । ज्ञान श्र योग दुनिया की कोई भी क्रिया क्यों न हो उसे करने के लिए सबसे पहले ज्ञान श्रावश्यक है । बिना ज्ञान के कोई भी क्रिया सफल नहीं हो सकती । श्रात्म-साधना के लिए भी क्रिया के पूर्वे ज्ञान का होना श्रावदयक ही नहीं श्रनिवायं माना है । जनागम में रुपष्ट दाव्दों में कहा है कि पहले ज्ञान फिर क्रिया । ज्ञानाभाव में कोई भी क्रिया कोई भी साधना-- भले ही वह कितनी ही उत्कृष्ट श्रेष्ठ एवं कठिन क्‍यों न हो साध्य को सिद्ध करने में सहायक नहीं हो सकती । श्रतः साधना के लिए ज्ञान ध्रावस्यक है । परन्तु ज्ञान का महत्व भी साघना एवं धश्राचरण में है। ज्ञान का महत्व तभी समझा जाता है जव कि उसके भ्रनुरूप श्राचरण किया जाए ज्ञान-पुर्वेक किया गया श्राचरण ही योग है साधना है । श्रतः ल्ान योग- 1... पड पा पाए व स&5 9 धिट छिट(5 फि। ६ णहा लगपड्तपीणा पे 15 जि 1. नाए3८ पद फ४ प8छु०ए९ छू. 4. . दफीड ध०शल्लापिध0णा ०. 00एटु0( (एकाग्रता ) 0. 0ा6- कण ए्पाएट्55 घ5 (0८. निषतए5 प्ाह्ते हा उड 50्तार्टफिपाड 10 छ5 शाकशाएड। प्रति 0११३1 नाऊण्प्प छिप एप हॉट पिच 9१ डे लैिट १0] है फू. 3. पढम नाणा तथ्ी दपा । -ादशदंकालिक ४ १०. ्




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