मुगल शासन पद्धति | Mugal Shasan Padhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरकार, उसके लक्षण एवं उद्देश्य ७ औरंगजेव ऐसे कुरान के कट्टरपंथियों के शास्त्रानुसारी ओज (०१1०005 ८०) को अत्यन्त भारी प्रतीत हुआ । उनकी मृत्यु के पश्चात्‌ अथवा उनके जीवन- काल में ही कुरान के सिद्धान्तों के अक्षरश: पालन तथा नयी पद्धति के उन्मूलन के थोड़े ही समय पश्चात्‌ सभी बातें पुन: अपने परम्परागत मार्गों पर आ गयीं । इस बिपय पर अगले अध्याय में विस्तारपूवक प्रकाश डाला जायगा । भू. उत्पादक के रूप में राज्य चौथे, मुगलकालीन भारत में राज्य ही बहुत बड़ी संख्या में कई वस्तुओं का सबसे बड़ा अथवा बड़े पैमाने पर उत्पादक था । खुले वाजार में तयार वस्तुओं के क्रय करने अथवा ठेकेदारों को अधिक संख्या में वस्तुओं के लिए आदेश देने की राज्य की वर्तमान पद्धति गृह-उद्योग के उस काल में सफल न होती, जवंकि विक्रय की दृष्टि से वेय क्तिक क्षमता द्वारा वड़े पमाने पर उत्पादन अज्ञात था । अतः राज्य ही विवश होकर आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करता था । इसकी आवश्यकता भी अत्यधिक थी । वर्ष में दो वार, वरसात और जाड़े में, बादशाह प्रत्येक मनसवदार को ऋतु के अनुकूल खिलअत प्रदान करता था 1 सन्‌ १६९० में चेतन एवं जागीर-प्राप्त मनसबदारों की संख्या क्रमशः लगभग ७५०० भौर ७००० थी । [सवाधिते आलमगीरी, पृ० १४अ] उच्च-' ' पदस्थ अमीरों के हेतु सम्मानसुचक कई वस्त्नों वाली एक पोशाक थी थी । ऋतु के अनुकूल इन दोनों उपहारों के अतिरिक्त राजकुमारों, राजसामन्तों, दास और वहुत-से मनसघदारों तथा दरवारियों को भी वादशाह के चन्द्र और सौर महीनों के अनुसार दोनों जन्म-दिवसों, राज्याभिषेक के चन्द्र मास सम्बन्धी वार्पिकोत्सव, दोनों ईद के अवसरों और औरंगजेब के राज्य तक प्राचीन फारसी वर्प के नये दिन पर, जबकि सूर्य नवरोज में प्रवेश करता है, सम्मानसूचेक वस्त्र दिये जाते थे । नियमानुकूल उन लोगों को भी खिलअत दी जाती थी जो दरवार में . उपस्थित कराये जाते थे, छुट्टी लेते थे अथवा पदों पर नियुक्त किये जाते थे। औरंगजेव के 'राज्यकाल में अपना धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म को अपनाने बालों को भी खिलअत प्रदान की जाती थी । इससे इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि शासन को वर्ष भर की आवश्यकता के अचुसार वहुत बड़ी संख्या में कपड़ों और सिले हुए वस्त्रों को संचित करना पड़ता था । साम्राज्य के प्रमुख नगरों में राज्य पर अवलस्त्रित, अनेक कारखानों द्वारा इनकी पूर्ति निश्चित रूप से हो जाती थी । यहाँ पर . (कभी-कभी सुदूर प्रास्तों से) कुशल कारीगर लागे जाते थे, जो सरकारी




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