अनुवाद विज्ञान | Anuvad Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व त्रनुवाद क्या है ? एक भाषा की किसी सामग्री का दूसरी भाषा में रूपातर ही भ्रतुवाद है। इस तरह झतुवाद का कार्य है एक (ल्लोत) भाषा में ब्यक्त विचारों को दूसरी (लक्ष्य) मापा में व्यवत करना कितु यह व्यक्त करना बहुत सरल कार्य नि है। होता यह है कि हर भाषा विशिष्ट परिवेश में पनपती है भरत उसकी ध्रपनी श्रनेक-ध्वन्यात्मक शाब्दिक रूपात्मक वावयाहमक झाधिक मुहावरे- विषयक तथा लोकोक्ति-विपयक श्रादि --निजी विशेषताएं होती हैं जो अनेक अन्य भाषाध्रो से कुछ या काफी मिन्‍त होती हैं और इसीलिए यह श्रावश्यक सही है कि स्रोत भाषा थी किसी घभिव्पकित के पूर्णत समान धशिव्यविति-- बाव्दतः ्रौर अरवंत्र.-लंधय भाषा में हो ही । पूर्णतः समान झभिव्यवित से शादय यह है कि खौत भाषा नी रचना था सामप्री को सुन या पढकर लोत भाषा-भाषी जो श्र (ग्रभिघार्थ लद्षयार्थ तथा व्यग्यार्थ) ग्रहण करे सक्ष्य पा में उसके श्रनुवाद को सुन या पढकर लक्ष्य भाषा-भाषी भी ठीक वहीं श्रथे (अ्भिवायें लक्ष्यार्थ तथा व्यग्यार्थ) ग्रहण करें। ऐसा सर्वदा इस लिए नहीं हो पाता कि प्राय स्रोत भाषा की अभिव्यक्ति से जो श्रर्थ व्यक्त होता है वह लक्ष्य भाषा की अ्भिव्यवित से व्यक्त होने बाले झरर्थ की तुलना मे था तो विस्तृत (८४020) होता है या सकुचित (८०80160) होता है या कुछ भिन्न (5 लिटत) होता है या फ़िर इनमें दो या अधिक का मिश्रण । साथ ही दोनों भापायों की अभिव्यवित इकाइयों (शब्द शब्द- बच पद पदबध वाक्याश उपवाकय वावय मुहावरे लोकोरक्तियाँ) के प्रस्ंग- साहचर्व (8550 लंया005) भी सर्वदा समान नही होते--हो भी नहीं सकते इसी कारण सोत भाषा में अभिव्यक्ति-पक्ष तथा अर्थ -पक्ष के तालमेल को ठीक उसी रूप में लय भाषा मे भी ला पाना सर्चदा सभव नहीं होता + वास्तविकता यह है कि दीनों सापास्ी में इस प्रकार के तालमेल की समानता हमेशा होती ही नहीं फिर उसे खोज पाने का प्रश्न ही नही उठता । श्रपवादों को छोड़ दे तो प्रायः स्रोत (भाषा की) सामग्री और उनके श्रनुवाद स्वसूप प्राप्त लक्ष्य (मापा मे) सामग्री ये दोनों झभिव्यक्ति तथा अर्थ के स्तर पर (१ )




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