राजपूताने का इतिहास भाग दो जिल्द पांच | History Of Rajputana Part 2 Vol. 5

History Of Rajputana by Dr. Gaurishankar Hirachand Ojha - डॉ. गौरिश्नाकर हिराचंद ओझा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् सी पहुंचाई, जिसके एवज़ में उसे बादशाह की तरफ़ से “राजराजेश्वर, महाराजञाधिराज, मददाराजशिरोमणिं” की उपाधियां प्राप्त हुई । उसके पीछे मद्दाराज्ञा राजसिंदद श्औौर प्रतापर्सिह बीकानेर के स्वामी हुए, पर वे ध्ाधिक समय तक राज्य न कर पाये । प्रतापर्सिद के साथ दी चीकानेर राज्य के इतिहास का पदला खेड समाप्त होता हे । प्रस्तुत दूसरे खेड में महाराजा सूरतसिंद से लगाकर मद्दाराजञा सर गेंगासिंदजी तक का विस्तृत इतिहास श्ौर बीकानेर राज्य के सरदारों का चूत्तांत सन्निविषप्ट दे । मद्दाराजा सूरतसिंह ने योग्यतापूवेक शासन प्रबंध कर, जो थोड़ी बहुत झव्यवस्था राज्य में फेल गद्दे थी, उसे दूर किया। उस के समय में राजपूताना में भी मरददटों का श्रातंक बहुत बढ़ गया था श्र वे राजपूताना के कई राज्यों-'उद्यपुर, जयपुर, जोधपुर, बूंदी श्ौर कोटा--को पद्दलित कर वहां के नरेशों से ख़िराज़ वखूल करने लगे थे । पेंसे समय में बीकानेर राज्य का उनके प्रभाव से झछूता बच जाना महा- राजा सूरतसिंद की शक्ति श्बौर नीति-चातुय्ये का दी दोतक हे । उसी समय के झास-पास अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कम्पनी का बढ़ता हुआ प्रभुत्व देखकर राजपूताना के राज्यों के स्वामी शपनी रक्षा की लालसा से झंग्रेज़ सरकार के संरक्तण में जाने लगे। इं० स० १८१८ में लेडि देसिटिंग्ज़ के समय झंग्रेज़ सरकार झऔर राजपूताना के राज्यों के बीच व्यलग-अलग सैंचघियां स्थापित हुई । बीकानेर राज्य का झंग्रेज़ सरकार के साथ मैत्री-संबंध स्थापित द्ोने पर, वहां की ांतरिक स्थिति में बहुत सुधार हुश्आा श्ौर झराजकता पवें डाकेज़नी बन्द होकर शांति, खुव्यवस्था तथा सम्द्धि का विकास होने लगा । क्रमशः शासन-शैली में भी परिवतेन दोकर प्रजा-दितेषी कार्यों की योजनाएं हुई । इस पारस्परिक मेंत्री का बीकानेर के नरेशों ने शव तक पूरी रूप से निवाहद किया हे श्लीर श्ञावश्य- कता पढ़ने पर समय-समय पर उन्होंने घन झौर जन से शंग्रेज़ सरकार को पूरी सद्दायता पहुचाई हे । प्रत्येक युद्ध के ध्वसर पर उन्होंने जिस तत्परता का प्रद्शन किया घद्द राठोड़ों के गोरव के झन्ुरूप दी दे ।




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