पश्चिमी भारत की यात्रा | Paschimi Bharat Ki Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.07 MB
कुल पष्ठ :
705
श्रेणी :
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No Information available about गोपालनारायण बहुरा - Gopalnarayan Bahura
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही पद्िचमी भारत की पाया
गुजरात के श्रनेकानेक स्थानों का बहुत ही सुन्दर रूप मे सविस्तार वर्णन
लिखा हुमा है । इस दृष्टि से चन्द्रावती के खण्डहुरो को देखने भी हम,
गुजरात विद्यापीठ के हमारे एक साथी प्रोफेसर श्री एन श्रार मलकानी
के साथ, गये । यद्यपि हमे उस समय टॉड का दिया हुआ कोई भी दृश्य
वहाँ नही दिखाई दिया-केवल कुछ खभे कही-कही सडे दिखाई दिये,परतु
हमको चन्द्रावती के प्रोचीन इतिहास की श्रौर वैभव की बहुत भ्रघिक
जानकारी थी जिसकी कनेल टॉड को कल्पना भी नहीं थी । तय भी
टॉड ने भ्रपने इस ग्रन्थ मे चन्द्रावती के जिन खण्डहरों के चित्र दिये
है, उन्ही को देख कर हम उस स्थान पर मुग्ध हो गये थे । इसलिए
हमने एक साथी श्रम्यासी को टॉड द्वारा लिखित सर्वप्रथम चन्द्रावती
के वर्णेन का अनुवाद करने का काम सौंपा । हमारा विचार, गुजरात
पुरातत्त्व मन्दिर के तत्वावधान मे हम जो पुरातत्त्व' नामक सशोधना-
त्मक उच्चकोटि का नैमासिक पस प्रकट कर रहे थे, उसी में कमद:
टॉड के इस महत्त्व के ग्रन्थ के प्रकरण प्रकाशित करने का था ।
सन् १६२८ ई० में हमारा विदेश मे-युरोप में जाना नि
हमारे छोड़े वाद गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर का काम प्राय स्थगित सा
हो गया । गुजरात के इतिहास से सम्बन्धित जो बहुत विशाल सामग्री
हमने एकन्रित की थी-वह हमे श्रपने बक्सो में बद कर नि
बाद मे, दो वर्ष वाद हम युरोप से लौटे शरीर वान्ति-निकेतन मे जाकर
“सिंधी जैन ग्रस्थमाला' का प्रकाशन कार्य मारम्म किया-तव हमने फिर
उस सामग्री में से चुन चुन कर, ग्रन्थमाला में प्रकाशित करने योग्य
ग्रन्थों को प्रकादान भी शने दाने हाथ में लिया ।
सचू १६४०-४ 0 म्बई दी न:
रेरी ढायरेवटर का हर कि दि जल
कृति का गुजराती या हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध करने की. हा
लालसा जागृत हो गई । हमारे पास उस स मसल, परानों
दर मय दो चार हिन्दी-भाषी
ने की को ही हिन्दी श्रनुवाद करने
कि पर कु पृष्ठो का अनुवाद भी कर
परन्तु, ग्रन्थ की झौली शरीर महत्त्व को देखते हुए हमको उनका थक
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