बाबू के चरणों में | Bhapu Ke Charno Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करुणा का पात्र ७ धापु का मेरे घर आना और कहां उनका २१ दिन का लम्बा उपवास वर्षों से जिस आस को लिये फिर रहा था वह जब पुरी होने को हुई तो विधि से मेरा इतना बड़ा सौभाग्य सहा न गया और उसने लिदंयतापुवंक उसे मुझ से छोन लिया । मगर मेरी बजाय उस महात्मा को वण्ड क्यो ? मन को भारी वेदना हुई और घोर लज्जा भी कि मेरे घर का निमंत्रण स्वोकार करते हो उन्हे २१ दिन निराहार रहना पड़ेगा। सिर लटकाए सौलाना के घर पहुंचा । महादेवभाई ने सारी हकीकत सुनाई और मुझे वह॒गांघीजी के पास ले गए। वह तो बैठे हंस रहे थे जेसे कुछ हुआ ही न हो । कहने लगे--मे तो तेरे घर चलने को तैयार हूं मगर आज भोजन न कर सकंगा। तु आज ले चलना चाहता है या उपवास समाप्त होने के बाद ? मेन कहा--अब तो मे आपको उपवास समाप्त होने के बाद ही कष्ट दूंगा । आज ले जा कर क्या करूंगा ? सेरा यह निणंय उन्हे भी पसंद आया। जहां गांधीजी का यह लम्बा उपवास सबको दुःख और (चिता में डालने वाला था वहां मेरे लिए वह उनके निकट सम्पर्क में आने का साधन बन गया । उपवास की खबर सारे देश में फल गई और दिल्‍ली में एकता सम्मेलन बुलाया गया। देश-भर के नेता दिल्‍ली में जमा होने लगे। मौलाना का घर था तो खासा बड़ा लेकिन उनके कामरेड व हमदद अखबार भी वहीं से निकलते थे इसलिए उसमे सारे नेता ठहर नहीं सकते थे । सेन अपना सकान जो काफो बड़ा था गांधीजी के अतिथियों के ठहरने के लिए पेदा किया । देवदासजी साबरमती चले गये थे उनकी जगह रामदासभाई आगये थे । मुझे यह काम सौपा गया कि महादेवभाई जिन्हें कहें उनके ठहरनेका प्रबन्ध मं अपने घर पर करूं । महादेवभाई रास- दासभाई और में स्टेशन पर जाते थे और गांधीजी के जो निजी आदमी आते थे वे मेरे यहां ठहराए जाते थे । इस प्रकार मेरे घर करीब पर्चोस- तीस अतिथि ठहराए गये और मुझे सरदार वल्लभभाई पटेल श्री राजगो- पालाचाय राजेन्द्रबाब श्री झंकरलाल बेकर दीनबन्घु ऐंड्रज आदि महा-पुरुषों के आतिथ्य-सत्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ।




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