संत काव्य | Sant Kaavya

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Sant Kaavya by आचार्य परशुराम चतुर्वेदी - Acharya Parshuram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूशिका . जातियाँ अपनी-अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को साथ लिये हुए क्रमशः एक दूसरे के अधिकाधिक संपक में आती जा रही हूं । उनकी रहन- सहन वेश-भूषा एवं विचार-पद्धतियों तक में कुछ न कुछ परिवत्तन होते जा रहे हूं। और उनकी साहित्यिक रुचि पर भी इसका प्रभाव पड़ता जा रहा हे । भिन्न-भिन्न परिभाषाओं के उक्त समन्वय संबंधी प्रयास का एक यह भी बहुत बड़ा कारण है किसी काव्य की रचना करते समय अब उसके रचयिता का अधिक व्यापक दृष्टि से विचार करना स्वाभाविक हो गया हैं । अब केवल उसी काव्य-कृति का समाज में अधिक स्वागत होना संभव है जो जन सामान्य की रुचि को भी अधिक से अधिक संतुष्ट करने में समथे हो । वैसे (काव्य अब कभी चिरस्थायी नहीं हो सकते जो केवल व्यक्तिगत यदा वा अर्थ की अभि- लाषा से किसी एऐंइ्वयंशाली पुरुष की छत्र-छाया में रचे गये हों और जो केवल भाषाविषयक बाह्य विशेषताओं का ही प्रदर्शन करते हों । सच्चे काव्य का मूल्यांकन अब उसके केवल मनोरंजन मात्र होने में ही नहीं अपितु उसके विषय की व्यापकता उसके उद्देश्य की महानता तथा उसकी उस शक्ति के आधार पर ही होगा जिससे वह अधिकाधिक जनहृदय के ममंस्थर को स्प्वं भी कर सकता हो । भाषा वा छैलीगत सौंदयं अथवा व्यक्तिगत विशेषताओं को इसी कारण क्रमश गौण स्थान दिया जाने लगा हूं और विषय का महत्त्व ही आजकल उसका प्रधान लक्ष्य समभ्ा जाने छगा हूं । किसी काव्य में प्रधानत दो बातें देखने में आती हं। उनमें से एक का संबंध उसके विषय से होता हूं और दूसरी का उसकी भाषा के साथ रहा करता हू ।/ भाषा की दृष्टि से उसकी उत्कृष्टता प्रायः तुलनोय-- 1८ फाक्षज्र 96 चुप्पंघ& पिएड पद सीफ्रट घणर्त पिडफिस्ट हसन धिफ्िए5 घाएं्पिफ्फाप 5प्9502006 (इपरि8घ206 04 उतद्8 5प्ूटटट5घ0ा0 ईट्ट- 10) घाट 3दरार्ताफि फ०6घाए कप 21 रद 1 परिहप फ्रंट हु०00 सदा दि 0 डा अदा०82व० (व 52ंए) एन 11




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