प्रेमपत्र राधास्वामी [छठवीं जिल्द] | Prempatra Radhaswami [Chhathvi Jild]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Prempatra Radhaswami [Chhathvi Jild] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दाल बचनर . प्रेमपत्र राघास्वामी .जिल्द ६ श्र गुजरती मालूम भी होने लेकिन उसके घंतर में उसका इपसर बहुत कम होने या बिल्कुल न होबे, यानी अंतर में प्रेम घ्पौर दया श्ौर मेहर की घारा उसको शान्ती . और ताकत चरदाश्त की देती रहे ॥ ं १०-सिवाय सत्तपष राधघास्वामी द्याल के जो इस लोक में संत सतगुरु रुप घारन करके प्रघट हुये; ध्पौर भी उनकी जगत के घ्पौर कोई इलाज काटने -करनमें, घ्पौर दर करने था घटाने मुसीबतां का क्ितट्॒ नहीं है, श्र न किसी दूसरे मत में उस जुगत का जकर या इशारा है ॥ १९-जो कुछ जतन या तदृब्ीरें वास्ते दूर करने या चटाने बाज तकलीफ. के जीव श्पमल में लाते हैं, वह मामूली घ्पौर दुनियानी हैं; श्पौर किसी २ मुध्पामले में घीर किसी २ वक्त थोड़ा बहुत फायदा भी देती हैं, लेकिन यहत सी जगह वह तदुच्ीरें कुछ काम नहीं झ्पाती हैं ॥ १२-राधास्वामी मत के मुवाफ्िक बहुत से करम सतसंग घी र ध्पम्यास करके काटे ध्पीर ढीले किये जा सक्ते हैं, घ्नौर जाज़े मेहर श्ौर दया से कमजोर हो जाते हूँ, यानी उनका ध्यसर कम ब्यापता है १३-यह क़रैफियत दया घ्पौर मेहर की सतसंगी जीव ' की मौत के वक्त बहुत साफ़ नजर झ्पाती है, यानी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now