संत कबीर | Sant Kabeer

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sant Kabeer by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

Add Infomation AboutDr. Ramkumar Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
झ संत कबीर शअमात्य शिवहर राज्य के पुस्तकालय से प्राप्त हुई थी जो संबत्‌ १६०० की लिखी हुई है। दूसरी प्रति नागपुर इन्द्रभान जी निवासी श्री मैरव- दीन तिवारी जी ने कृपाकर मेजी थी जिसमें अनेक संतों सत्य कबीर को साथी दी वाणी के साथ-साथ यह सास्वी भी है और संवत्‌ १८४२ की लिखी है श्रौर तीसरी प्रति मखदूमपुर जि० गया निवासी श्री नेतालालराम जी की मेजी हुई है जिसमें यद्यपि सन्‌ सबत्‌ नहीं लिखा है परंतु पुस्तक के देखने से जान पड़ता हैं कि यह भी प्राचीन ही लिखी हुई है। इसके श्रतिरिक्त स्वामी श्री युगलानद जीं के पास श्र भी श्रनेक प्रतियाँ थीं जिससे उन्होंने इस पुस्तक को शुद्ध कर लिया है । (श्री खेमराज श्रीकृष्णुदास) यदि श्री युगलानंद जी श्पनी प्रति में संवत्‌ १६०० की प्रतिवाली सामग्री रखते तो उनकी प्रति श्रवश्य प्रामाणिक होती किंतु उन्होंने किया यह है कि कबीर साहब की जितनी साखियाँ जगत में प्रसिद्ध हैं सब इसी पुस्तक में संकलित कर ली हैं और उन्हें संवत्‌ १६०० की प्रति की साखियो से यथास्थान शुद्ध किया है । इससे इस पुस्तक की बहुत-सी सामग्री संवत्‌ १६००की प्रति से श्रति- रिक्त है श्रौर उसकी प्रामाणिकता के सबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योकि उनकी प्रति में प्रामाणिक श्रौर अ्रप्रामाणिक सामग्री एक साथ मिल गई है | कबीर धर्मबंधंक कार्यालय सीयाबाग बड़ौदा का साखी ग्रंथ एक लोचनात्मक अवतरखणिका श्र अनुक्रमणिका के साथ है श्र उसमें कबीर को सभी साखियाँ संग्रहीत हैं किंतु पुस्तक में किसी भी स्थान पर नहीं लिखा है कि साखियों के पाठ का श्ाधार कया है । अतः इस पाठ की प्रामाणिकता के संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता । साधु पूरनदास जी का बीजक प्रंथ बहुत प्रसिद्ध कहा जाता है । संवत्‌ १८६४ में उन्होंने उसकी त्रिज्या लिखी । यह त्रिज्या पहली बार बाबा देवी- प्रसाद और सेवादास श्रौर मिस्त्री बालगोविंद की सहायता बीजक से मुंशी गंगाप्रसाद वर्मा लखनऊ के छापेखाने में छापी न गई थी । उसके बहुत झ्रशुद्ध हो जाने के कारण हर जगह के साधु लोग बहुत शिकायत किया करते थे ।. . .. . .सब साधु-महात्माद्ों की दया से एक प्रति हस्तलिखित बीजक त्रिज्या सहित बुरहान- पुर की लिखी हुई साधु काशीदास जी साहब से हमको मिली । उस अंथ साखी ग्रंथ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now