रुक्मणी विवाह | Rukmani Vivah

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Rukmani Vivah by श्री हंसराज - Shri Hansrajसुन्दरलाल - Sundarlal

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सुन्दरलाल - Sundarlal

भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के  साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।

26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।

मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुव्मिणी विवाह ७ होता है, जिससे उसके समस्त दुर्गूण छिप जाते है तथा वह प्रशसनीय माना जाता है और किसी शआ्रादमी मे कोई ऐसा वडा दुर्गुण होता है; जिससे उसके सद्युणों पर पर्दा पड़ जाता हू और वह निन्यय माना जाता है। यह नियम सारे संसार के लिए है । मनुष्य की गुरुता, लघुता भी इसी के अधीन है । मैं यह नहीं कहता कि कृष्ण इस नियम से बचे हुए है, यानी उनमे स्वथा गुण ही हैं। परन्तु उनके गुणों के श्राधिक्य ने उनके समस्त दूषणो को ढाक दिया है और श्राज उनके समान प्रश्सनीय दूसरा कोई नहीं माना जाता । श्रेष्ठजनों मे उनका आदर है, प्रभाव है श्रौर वे कुलीन माने जाते हैं । उनके विरुद्ध तुमने जो वाते कही है, वे ठोक नही है। तुम्हे किसी ने अ्रम में डाल दिया है । उनके साथ रुक्मिणी का विवाह करना, न करना हूसरी वात है परन्तु किसी प्रतिप्ठित्त पुरुष के विपय में बुरे विचार रखना ठीक नहीं ! मेरा विश्वास तो यही है कि कृष्ण के साथ रुक्मिणी का विवाह करने से श्रपने गौरव की वृद्धि ही होगी रुक्म--झाप मुझे भ्रम मे समन रहे है, लेकिन वास्तव में आम झ्रापको है । श्रेष्ठसमाज से कृष्ण का कदापि आादर नही है, किन्तु वह घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। उसके साथ रुविमणी का विवाह करने से श्रेष्ठसमाज के समीप हम भी घृणास्पद ही माने जायेगे; हमारा गौरव कदापि नहीं वढ़ सकता ! झाप कुछ भी कहिये, कृष्ण के साथ रुविमणी के विवाह से मै कदापि सहमत नहीः हो सकता, न झ्रपने रहते




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