हिंदी शब्दसागर खंड 3 | Hindi Shabd Sager Bhag 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
116.59 MB
कुल पष्ठ :
584
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जे जी दर श्१६४ कौ करकलमलमियन बपचम्पकडसंत कमर पते जमिकलनिविक लेप पविगक हल लव वर ्रथमेथेत उतर पल्सकेशेमेरमिस ये कफ से रस िफ वंपसिवििवदतिसकप . कर नकेल दा कक मेरे सकतॉलिर लिए ेलिपिययता हर मूक तसदेट बदतर. तक एके सफानातानिकनिए बमितल नव हलगलस्थीनम्वेलिगतफपफिमन रिपस्विकपिकमिलियवैलरतिनिए फिर वेहकपिसप लमिवॉिकनिस सके सेम्कतों. से कह पके | लतनेकिविरततिजाव .ाइपसिएलसॉलिंमिकेये भरा कहावत... ल्ैफिकलि। बनना | प्राण गप्रचना कठिन है जाना । ऐसे भारी के मद वा संकट में फल जाना कि पीछा छुडाना कंठिन हो जाय । की की निकाकना (१) मन की उमंग पूरी करना । दिस की इवस निकालना । मनारथ पूरा करना । (९) इदय का उदार निकालना | क्रोश्न दुःख दोष आदि उद्देग के प्रक भव कर शांत करना । बदला कोने की इच्छा पूरी करना | जी की जी में रहना न मनारथें का पूरा न हाना । सन में ठानी सेवी था चाही हुई बता का न होना | जी की पढ़ना न प्राण बचाने की चिंता छेना । प्राण बचाना कठिन है जाना | ऐसे भारी म माद वा. संकट में फेल जाना कि पीह्ठा छुडाना कठिन हो जाय | श०--सब असबाव दाढ़ो सेन कादो लेन काठ जिय की परी संसार सहम सैंडार को ।-तुकसी | जी का जीयडबाला । जिगरेवाला | लाइसी | हिम्मतवर | दमदार | श७भती धरती के भीके झापुनी झनी के संग आातें जुरि शीके में सजी के गरणी के से ।--गोपाक । ( किसी के ) जी को थी समता न किसी के विषय मैं यह समसना कि वह भी जीव है उसे भी कप होगा । दूसरे के कह के। समझना | दूसरे के कलश न पहुंचाना । दूसरे पर दया करना | जी को मारभा ८ (१) मन की इच्छाओं के ऐकना । चित्त के उत्ताहें के न पूरा करना । (९) संतेप्र धारण करना । जी को से क्गना न (१) चित्त में अनुभव हेखा । इुदय में बेदना देना । सहानुभूति हेना | जैसे दूसरों की पीड़ा शभादि किसी के जी को भहदीं करती । (९) प्रिय झरना | भाना | अच्छा काना । जी. खरकना ० (१) चित्त सें खटका था . संदेह अत्पन होाना। (२) हानि आदि की आशंका से ( किसी तुराग न रहना । घृण्णा देना ।. मेले . प्राण देना काम के करने से ) जी हिचकना । ( किसी से था किसी की झार से ) थी खा करवा मन फेर देना । चित्त में घुश्दा वा विरक्ति उत्पन्न कर देना । चित्त बिरक्त करना । इदय में दुर्भा यत्पन्न करना । श०---तुम्दी मे मेरी भार से समका जी . साहा कर् दिया है । ( किली- से था किसी की झोए से ) जी ला हम मन चित्त हुट जाना | मत फिर जाना वा. विर्क्त होना | पक बात से दनकी ओर से मेरा शी खट्टा है गया । जी सपाना स् (१) सिंत तस्मय करना 1. है किंदी काम में ) जी झगाना । नितात दत्तचित्त हल जी ताह कर किली काम में झगना | (२) उठाना । मी खुक्षना संफ्राग्व छूट जानो .. भड़क खुस जाना ] किसी काम के करने मैं. चिचक मे रह शाना | जी खाक कर न (९) वेघडक | बिना किसी संकाच के | बिनां किसी प्रकार के भय था जगा के । बिना दिवके | जेंसे लो कुछ तुम्हें कहना दे जी सो कर कही । (९) जितना भी चाहे [बिना अपनों ओर से कोई कमी किए. । मम माना 1 बंघे् ते ब०नन्तुस हमें ली खोला कर गाकियाँ कं दो कोई चिंता नहीं । जी गैंबाता नन्प्राणा देना | जान खोना | जी गिरा जाया ्न्जी बैठा जाना । तम्रीयव सु हेती जाना | शिथिनता आती जाना । जी भषराना न है) सित ब्याकृत हाना | मन व्यय है । (४) सन ने लगना । जी ऊचना | जी चलनान (१) जी चाइना । इच्छा हाना। (२) जी आता । लिस मोहित होना | जी चला स्न (१) भीर । दिकेर बहादुर | शूर । झूरमा । (९२) दानवीर । दाता । दानी । उदार | दानशूर । (३) रसिक । सदइदय । जी चक्षाना न ( 9 इच्छा करना । मन दै।डाना । चाह करना । (२) हिम्मत बॉँधना | साइस करना | दै।तला गढाना । जी ाइना मनामिलाष हैना | मन बझना । इच्छा हैन। | जी चाहे न (१) यतिं इच्छा है। | यदि सन मैं आधे । जी खुराना सन किसी काम या बात से बचने के लिये दीला बाली करना या युक्ति रखना । किसी काम से मागना | जैसे यह मैकर काम से जी चूराता है । जी चुपाना स्न दे जी चुरना | जी छूदना न (९१) इतम की इृद्ता न रहना | साहस दूर हैना । निराशा हे।ना | माउम्मेदी है।न। | उत्साह आता रहना । (२) चकाबड आना | शिषिलता आना । जी छोड़ा करना न (१) हुदप का उत्ताइ कम करना । समन उदास करना । (२) इदय संकुचित करना | दान देने का साइस कम करना | उदारता हेाइना कूंमूती करना | जी चाड़गा (१) प्रा त्याग करना । मरना | (२) हृदय की इृदता खाना | साइस गैंबाना । हिम्मत हरता | जी छाइ कर मागना हिम्मत हार कर नें बैग से भागना । एकदम भागना । ऐसा मागना कि दम सोते के किये भी न ठद्दरना | ही शक्षना (१) चित्त लंतर्स हैनां | इदम में लेताप हाना | जिन में कुदना चौर दु ख हैंनि। कोभ आना | शुस्ता झगना । (९) ईर्ष्या डना | डाइ हेना | जी जलाना न (१) चित्त संत करना | इदय में कोध उत्पन्न करना । झुठ़ाना । चिढ़ाना । (२) हृदय में बुग्ख उत्पन्न करिना । रंज पहुँचाना | दुष्यी करना । चित्त ब्यचधित करना । सताना। (१) ईा था डाह उत्पन्न करना । जी आमेता है हुनय ही अनुभव करता है कहा महू जा सकता | सही हुई कठिनाई दुख पीड़ा आदि बंणीन के बाइर है । जैसे (कृ) साग मैं जो मी कहे हुए जी ही शानता है। (ख) कहेंगे इतनी भार खाई है कि जी ही. जानता देगा । ( जी जानती होगा भी चेका जाता हैं )| जी जान कढ़ाना न मन लगाना | देतखित्त हेना। जी आन से कगना इुदय ले प्रइत्त होना | सारा ध्यान लगा देखा | एकापमर चित्त देकर तत्पर देना | इ०--वई जी शान से इस काम में कगी है । किसी को जी शान से कगी है केई इुंदिय से तपर है । किपी की बार इच्छा सौर प्रयल है । काई सारा ध्यान लगा कर उद्यत है । काई भरावर इसी चिता चर उद्योग में है । ह०--शसे जी जान से लगी है कि मकान भ््ण
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