श्रीकृष्ण - अभिनन्दन - ग्रन्थ | Shri Krishan Abhinandan Granth
श्रेणी : संस्मरण / Memoir, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.23 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ 4 ३--+अभिनन्दन वन्दन ओर आदीवाद वन-राप्ट्रक्ि श्री मंविछीदरण गुहत क मर २---तदन्त श्री यान्ति भिश्ु .--सरदर श्री वछभ माई पट ढ४ --देशमान्य श्री जयप्रकाशनारायण न-राजपि श्री पुरपोत्तम दास ठम्डन श माननीय नी गोनिदव ल्भ पुस्त दर उ--माननीय प० रविशक्रर युक्त ८--माननीय श्रां यार्गगगाघर खेर न ---माननीय श्री सम्पूरानन्द् ढेर १८०-मासनीय जाचारये श्री बद्रीनाथ चर्मा ११--हित एक्मेटे सी श्री सा व श्रीदरि जे म् दे ५०---हर एस्सेलिसी श्रीमती सरोजनी नायड़ १३--हिज एस्सेटिसी सर मद्दाराज खिद् हा न १८--हिज एक्सेटेस्सी जी आसफ अछी ३८ १५--दिज एफ्सेलेसी थ मगठदास प्रकयासा १---माननौय डॉक्टर श्री गोपीच दू मार्च व७--माननीय श्री जगजीवन राम द३ १८ --थरी सादिक भरी कं १९--माननीय थी मोहनलाल सम्तेना ०--माननीय श्री संत्यनारायण सिह २१--डॉ० श्री भमर नाव मां ढ्ब्ठी २०--श्री श्री प्रकाश जी ३--माननीय गोपीनाथ वारदोलाइ ० ८--पढित के० एल० इुये दे ड् दर २५७--माननीय श्री दरेठण महतान न २६--श्री दाकरराव दव न २७--थरी वात्मोर्ति प्रसाद विकट (कषिता 0) ० रे २८--पोदद्वार थी रामावतार अरुण (करिता) २९-श्री माहेरवरी सिह महेश (कविता ३०--जमील मजहरी (उर्दू कविता) 3१--वफा वरादी (उद. कविता) इर--श्री विस्मि (उढूं. कविता) को ३३--श्री शीलभद सादित्यरत्न
User Reviews
No Reviews | Add Yours...