हिंदी शब्दसागर भाग 1 | Hindi Shabdasagar Bhag-1

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Hindi Shabdasagar Bhag-1 by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरुपौत्तेमदैव के नाम से संक्रेत मिलता है । इनका लिकाडकोश--नाम सेही 'भमरकोश' का परिशिप्ट प्रतीत होता है । फलत वहाँ श्रप्राप्त शब्दों का इसमें सकलन है। ( “'अमरकोश' से पूवें का भी एक 'ल्लिकाडकोश' बताया जाता है । पर उससे इसका सबंध नही जान पडता । ) इसमें श्रनेक छद हैं श्रौर इसकी टीका भी हुई है । हारावली में पर्याय शब्दों श्रीर नानाथ॑ शब्दों के दो. विभाग है । श्लोकसंख्या २७० है । पर्याप्रचाची विभाग का तीन श्रध्पायों-- (१) एकशइ्लोकार्मक (२) प्रघश्लोकात्मक तथा. (३) पादात्मक--में उपविभाजन हुमा है। नाना विभाग में मसी-( १ ) सर्धश्लोक, ( २ ) पा दश्लोक झौर एक शब्द में श्र्थ दिए गए हैं । इसमें प्राय विरलप्रयोग श्रौर भ्रप्रसिद्ध शब्द हैं जबकि लिकाढकोश में प्रसिद्ध शब्द ' ग्रथकार की उक्ति के श्रनुसार १र वर्पों में वढें श्रम के साथ. इसकी. रचना की गईहै। (१२ मास भी एक पाठ के श्रनुसार ) । वणदेशना श्रपने ढंग का एक विधित्न और गयात्मक कोश है । देगभेद, रूढिभेर शध्ोर भाषाभेद से ख, क्ष या हु, ड श्रथवा ह, घ में होनेवाली भ्राति को अनेक प्रथो के ्राघार पर निराकरण ही इसका उद्देश्य जान पढ़ता हैन-शभ्रत्न हि प्रयोगे बहुदश्वाना श्रूतिसाघारण्यमात्रणा गृहणता खूरकुरप्रादी खका रक्षका रयो सिह्शिघानकादी हकारघकारयों' * * तथ गोड/दिलिपि साधारण्यादू दट्विण्डी रसूडाकेशादी हकार-डकारयो प्रातय उपनायन्तों । श्रतस्तद्विवेचनाय क्वचिद्धातुपरायणे धातुवृत्ति- पूजादिएु प्रव्यक्तलेखनेन प्रसिद्धोर्देशन धातुप्रत्ययोणा दिव्याख्यालेख नेन बवचिंदाप्तबद्नेन प्लेपादिद्शनेन वर्ण देशनेयमारभ्यते । ( इडिया भाफिस केटेलाग, प० २९४५ ) 1 'मद्दाक्षपणाक', 'मही घर” श्रौर 'वररुचि' के बनाए 'एकाक्षर' कोशों के समान 'पुरुषोत्तमदेव' ने भी एकाक्षर कोश घनाया जिसमें एक एक श्रक्षर के शब्दों के थ्रथे वर्णित है । द्विसुपकोश भी ७५ श्लोको का लघुकोश हैं। नषघकार “श्रीदप' ने भी एक द्विरुपकोश लिखा था । केशवस्वामी (समय १२ वी या १३वीं शताब्दी ) एक का नानार्थारव- सक्षेप को झपनी शैली के कारण बडा महत्व प्राप्त है । एक एक लिंग के एकाक्षर से पडक्षर तक के ध्रनेकार्थक शब्दों का फ्रमश छह कॉडो में सप्रह है श्रीर प्रत्येक काड के भी क्रमश स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुसकर्लिंग, वाच्यलिंग तथा नानालिंग पाँच पाँच श्रध्याय है। प्रत्येक श्रध्पाय फी शग्दानुक्रमयोजना में श्रकारादिवशुंक्रम की सरस्ि श्रपनाई गई है। 'म्रमरकोश' में झनुपलब्ध शब्द ही प्राय इसमें सकलित हैं । पु ०० इ्लोकसर्यक इस घुदन्नानाथेकोश मे बुछ नदिक प्राब्दों का भ्रौर ३० प्राचीन कोशकारो के नामों का निदेश है। ' सेदिनिकर का समय लगश्ग १४ वी शताब्दी के श्रासपास या उससे कुछ पूर्ववर्ती काल माना गया है। एक मत से ११७५ ई० के पुर्व भी इनका समय वताया जाता है । इनके कोश का नाम नानार्थशब्द- कोश है । पर सेदिनिकोष नाम से वह श्रधिक विष्यात हैं । इसकी पद्धति भोर शैली पर 'विश्वकोश' की रचना का पर्याप्त प्रभाव है । उसके भ्रतेक उलोक भी यहाँ उद्घृत है। ग्रधारभ के परिभाषात्मक श्रश पर 'भमरकोश' की इतनी गहरी छाप है कि इसमें “्पमरकोश' के न तक गशब्दश' के लिए गए हूँं। इसमें कोई खास विम्ेषता हैं। मेदिनी के भनतर के लघुकौश न ती वारंवार उद्घृत हुए हैं भर न पृ्वंकोशों के समान प्रमाणारूप में मान्य है। परठु इनमें कुछ ऐसे प्राचीनतर श्रीर प्रामाणिक कोशो का उपयोग हुआ हैं जो श्राज उपलब्ध नहीं हैं श्रथवा श्रौर श्रणुद्ध रूप में. श्रशत उपलब्ध हैं । (१) 'जिनभद्र सुरि' का कोश है श्रपवर्गनाममाला-- जिसका नाम “पचवर्गपरिहारन।ममाला भी है। इनका पाल संभवत परवीं शताब्दी के श्राप्ष पास है। (२) 'शब्दरत्नप्रदीप'--सभवत थयट् कल्यारामल्ल का शब्दरत्नप्रदीप नामक पाँच कार्डोवाला कौश है । (समय लगभग १२६४५ ई०)। (३) महीप का. शब्दरत्नाकर--कोश दै जिसके नानाथेंभाव का शी षंक है---श्रनेकार्थ या नानार्थतिलक, समय है लगभग १३७४ ई०। (४) पसरागदत्त के कोश का नाम “भूरिक- प्रयोग' है । इसका समय लगभग वही हैं। इस कोश का पर्यायवाची भाग छोटा है श्ीर नानाथं भाग बडा | (५) 'रामेश्चर शर्मा की शब्दमाला भी ऐसी ही फ्ति है। (६) १४ वी शताब्दी के विजयनगर के राजा हरिहरगिरि की राजसभा में भास्कर श्रयवा दडाधिनाथ थे। उन्होंने नानार्थरत्तमाला घनाया । (७) श्रभिधघानतत्र का निर्माण जटाघर ने किया । (८) 'सनेकाथे” या नानार्थ कमजरी '-- 'नामागदसिह' का लघू नानार्थकोश है। (६ ) रूपचद्र की रूपमजरी--नाममाला का समय १६वी शत्ती है। ( १० ) शारदीय नाममाला 'ह्षकी त्ति' कृत है ( १६२४ ई० ) । ( ११ ) शब्दरत्नाकर के करता 'वामनभट्ट वाण' है। ( १९ ) नामसग्रहमाला की रचना भ्रप्पय दीक्षित ने की है । इनके भत्तिरिक्त (१३) नामकोश (सहजकी ति का (१६२७) शोर (१४) पचतत्व प्रकाश (१६४४) सामान्य कोश हैं । कल्पद् कोश फेशवकृत है । नानार्थाणिवसक्षेपकार “के शवस्वामी' से ये भिन्न हैं। यह प्रथ सस्कृत का बुहतत्तम पर्यायवाची कोश है । इसमें नानाथें का प्रकरण या विभाग नद्दी है। इसमें पर्यायों की सस्या सर्वाधिक है; यथा--पृथ्वी के १६४ तथा शझग्नि के ११४ पर्याय इत्यादि । 'मल्लिनाथी' टीका में उद्घृत वचन के श्राघार पर “केशव नामक' तृतीय कोशकार भी श्रनुमानित हैं। तीन स्कधों के इस कोश की प्लोकसख्या लगभग चार इजार है। स्कघो के श्रतगंत श्रनेक प्रकाड हैं। लिंगबोघ के लिये श्रनेक सक्षिप्त सकेत हैं। पर्यायो की स्पष्टता ध्ीर पूर्णता के लिये श्रनेक प्रयोग तथा प्रतिक्रियाएं दी हुई हैं । इसमें कात्प चाचस्पति, भागुरि, घमर, मगल, साइसांक, महेश धोर जिनांतिम ( सभवत हेमचद्र ) के नाम उल्लिखित हैं । चतुर्थ श्लोक से नवम श्लोक तक--कोश में विनियुक्त पद्धति का निर्देश किया गया हैं। रचनाकाल १६६० ई० माना जाता है । केशवस्वासी के नानार्थाणाव कोश से यद् भिन्न है । (१६ ) शब्दरत्वावली के निर्माता सयुरेश हैं. ( समय १७वीं शतोब्दी ) । इनके भर्तिरिक्त कुछ शोर भी साधारण परवर्ती कोश हैं। (१७) कोशकल्पतररय--विश्वनाथ; (१८) नानार्थपदपीठिका तथा शब्दलिगार्ययद्विका--सुजन ( दोनो ही नानार्थकोश हैं) । इनमें प्रथम में--भव्यव्यजनानुसारा क्रम है श्रोर द्वितीय में तान काड हैं जिसमें क्रमश एक, दो भोर तन लिंगो के शब्द हैं) । (२०) पर्यायपदमजरी घोर शब्दार्थमजूषा--प्रसिद्ध कोश हैं। (२१) महश्वर के काश का नाम 'पर्यायरल्लमाला' दे--सभवतः पर्मायवाची कोश 'दिश्वप्रकाश' के निर्माता




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