अभिधान चिन्तामणि | Abhidhana Chintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.66 MB
कुल पष्ठ :
563
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ह४ )
को प्राप्त करेगा 1” आधाय की उक्त वाणी को सुभकर पाहिनी देवी ब्याकुछ
हो गयी । माता की ममता ने उसके हृदय को मथ डाला, अतः वह गदुगद
कंठ से बोछी--'प्रभो ! यह तो मेरा प्राणाधार है । इस कलेजे के टुकबे के
बिना मेरा जीवित रहना संभव नहीं । दूसरी बात यह भी है कि पुत्र के ऊपर
माता-पिता दोनों का अधिकार होता है, अतएव इसके पिता की आज्ञा भी
अपेस्तित है । इस समय इसके पिता ग्रामान्तर को गये हैं । उनकी अनुमति
के बिना मैं अकेली इस पुत्र को देने में असमर्थ हूँ कहा जाता है कि पाहिनी
जैन कुछ की थी और चाचदेव शेव । अतः पाहिनी को यह आझ्षा भी थी कि
उसका पति जेनाचाय को पुत्र देना शायद ही पसन्द करेगा ।
आचार्य देवचन्द्र ने चांगदेव की प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की. तथा
उसके द्वारा सम्पन्न होनेगले कार्यों का भव्य रूप उपस्थित किया, जिससे उ पस्थित
सभी समाज प्रसन्न हुआ । अनेक व्यक्तियों ने साहित्य भौर शासन की प्रभावना
के हेतु उस पुत्र को आचार्य देवचन्द्र सूरि को समर्पित कर देने का जनुरोध
किया । पाहिनी ने उस अनुरोध को स्वीकार किया और उसने साहसपूर्वक
उस शिशु को आचार्य को सौंप दिया । आचार्य इस भविप्णु बाठक को प्राप्त
कर अत्यन्त प्रसक्न हुए और उन्होंने वालक से पूछा--'वस्स ! तू हमारा
शिप्य बनेगा ?” चांगदेव ने निभयतापूचक उत्तर दिया--जी हाँ, अवश्य
बनूँगा ।' इस उत्तर से आचार्य बहुत प्रसन्न हुए । उनकें मन में यह आदांका
लगी हुई थी कि चाचिग यात्रा से वापस लौटने पर कहीं इसे छीन न ले ।
भतः वे उसे अपने साथ लेकर कर्णावती पहुँचे और वहाँ उदयन मन्त्री के
यहाँ उसे रख दिया । उद्यन उस समय ज़नधर्म का सबसे बड़ा प्रभावशाली
व्यक्ति था । अतः उसके संरक्षण में चांगदेव को रख्वकर आचाय देवचन्द्र
चिन्तासुक्त हुए ।
चाचिग जब ग्रामान्तर से लौटा तो पुन्रसम्बन्घी समाचार को सुनकर
बहुत दुःखी हुआ और पुत्र को वापस लाने के लिए तत्काल ही कर्णावती को
चल दिया । पुत्र के श्रपहार से वह बहुत बुःखी था, अतः देवचन्द्राचार्य की
पूरी भक्ति भी न कर सका । ज्ञानरादि आाचाय तत्काल उसके मन की बात
समझ गये, अतः उसका मोह दूर करने के लिए अमस्तसयी वाणी में उपदेश
दिया । इसी बीच भाचार्य ने उदयन मन्त्री को भी अपने पास बुला लिया ।
मन्व्रिवर ने बढ़ी चतुराई के साथ चाचिंग से वार्तालाप किया और धर्म के
बड़े भाई होने के नाते श्रद्धापूवंक उसे अपने घर ले गया और बड़े सत्कार से
भोजन कराया । तदुनन्तर उसकी गोद में चॉगदेव को बेठाकर पश्चाक़् सहित
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