अभिधान चिन्तामणि | Abhidhana Chintamani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ह४ ) को प्राप्त करेगा 1” आधाय की उक्त वाणी को सुभकर पाहिनी देवी ब्याकुछ हो गयी । माता की ममता ने उसके हृदय को मथ डाला, अतः वह गदुगद कंठ से बोछी--'प्रभो ! यह तो मेरा प्राणाधार है । इस कलेजे के टुकबे के बिना मेरा जीवित रहना संभव नहीं । दूसरी बात यह भी है कि पुत्र के ऊपर माता-पिता दोनों का अधिकार होता है, अतएव इसके पिता की आज्ञा भी अपेस्तित है । इस समय इसके पिता ग्रामान्तर को गये हैं । उनकी अनुमति के बिना मैं अकेली इस पुत्र को देने में असमर्थ हूँ कहा जाता है कि पाहिनी जैन कुछ की थी और चाचदेव शेव । अतः पाहिनी को यह आझ्षा भी थी कि उसका पति जेनाचाय को पुत्र देना शायद ही पसन्द करेगा । आचार्य देवचन्द्र ने चांगदेव की प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की. तथा उसके द्वारा सम्पन्न होनेगले कार्यों का भव्य रूप उपस्थित किया, जिससे उ पस्थित सभी समाज प्रसन्न हुआ । अनेक व्यक्तियों ने साहित्य भौर शासन की प्रभावना के हेतु उस पुत्र को आचार्य देवचन्द्र सूरि को समर्पित कर देने का जनुरोध किया । पाहिनी ने उस अनुरोध को स्वीकार किया और उसने साहसपूर्वक उस शिशु को आचार्य को सौंप दिया । आचार्य इस भविप्णु बाठक को प्राप्त कर अत्यन्त प्रसक्न हुए और उन्होंने वालक से पूछा--'वस्स ! तू हमारा शिप्य बनेगा ?” चांगदेव ने निभयतापूचक उत्तर दिया--जी हाँ, अवश्य बनूँगा ।' इस उत्तर से आचार्य बहुत प्रसन्न हुए । उनकें मन में यह आदांका लगी हुई थी कि चाचिग यात्रा से वापस लौटने पर कहीं इसे छीन न ले । भतः वे उसे अपने साथ लेकर कर्णावती पहुँचे और वहाँ उदयन मन्त्री के यहाँ उसे रख दिया । उद्यन उस समय ज़नधर्म का सबसे बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था । अतः उसके संरक्षण में चांगदेव को रख्वकर आचाय देवचन्द्र चिन्तासुक्त हुए । चाचिग जब ग्रामान्तर से लौटा तो पुन्रसम्बन्घी समाचार को सुनकर बहुत दुःखी हुआ और पुत्र को वापस लाने के लिए तत्काल ही कर्णावती को चल दिया । पुत्र के श्रपहार से वह बहुत बुःखी था, अतः देवचन्द्राचार्य की पूरी भक्ति भी न कर सका । ज्ञानरादि आाचाय तत्काल उसके मन की बात समझ गये, अतः उसका मोह दूर करने के लिए अमस्तसयी वाणी में उपदेश दिया । इसी बीच भाचार्य ने उदयन मन्त्री को भी अपने पास बुला लिया । मन्व्रिवर ने बढ़ी चतुराई के साथ चाचिंग से वार्तालाप किया और धर्म के बड़े भाई होने के नाते श्रद्धापूवंक उसे अपने घर ले गया और बड़े सत्कार से भोजन कराया । तदुनन्तर उसकी गोद में चॉगदेव को बेठाकर पश्चाक़् सहित




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