तिलक मन्जरी | Tilak Manjari

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Tilak Manjari by पुष्पा गुप्ता - Pushpa Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें पर अपने गुद से ऋषभदेव की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी । उसो ऋषपभदेव को स्तुति में उसने 'जय जतु कप्प” यट पचशतगायामय स्तुनि की रचना की 12 घनपांल ने विभिन्न जैन तीथों का ्रमण किया था इसका नि्देश उन्होंने अपनी रचना “सत्यपुरीय-महावीर-उत्साह' में दिया है । वे कहते हैं कोरिट, सिरिमाल, धघार, आाहाड़ु॒सराणइ अणहिलवाइड, विजपकोट्ट पुण पालितताण 1 पिदिखदि ताव बहु्त ठाममणि चो छू पदसर ज अज्जवि सच्चदरिदीरू सोहणिहि न दीसइ ॥। गर्थाद्‌ उन्होंने कोरटंक, श्रीमालदेश, घार, आहाड, नराणा, अणहिलवाड, पादण, विजयकोट्ट तथा पालिताणा आदि जैन तीयों की यात्रा की थी । इस प्रकार हमे घनपाल की रचनाओ तथा परवर्ती जैन प्रबस्धों से उसके जीवन के निपय मे विस्तून जानकारी प्राप्त होती दै । धघनपाल का समप सौभाग्यवश घनपाल उन सस्कृद कवियों में है, जिनके समय के विषय में अधिक मतभेद नही है। इसका कारण यहे है कि उन्होंने स्वय अपने प्राकृत कोप पादयलच्छीनाममाला के अन्त मे उसके रचनाकाल का €पप्ट निर्देश क्रिया है । पाइयलच्छी के अस्त में उसने लिखा है--“विक्रम के 1029 बर्ष बीत जाने पर जब मालवसरेश ने सान्यदेट पर आश्रपण करके उसे लूटा, उस समय घार।नगरी मे निवास करने वाले कवि घनपाल ने अपनी कनिष्ठ मगिनी सुम्दरी के निए इस कोप की रचना को ।'टै इस उद्धरण मे जिस मालवनरेश का उल्लेख किया गया है, वहू परमार नरेश सीयक है, इसकी पुष्टि ऐतिहासिक प्रमाणों से होती है। जिस समय का उल्लेख किया गया है उस समय मान्यखेट पर राष्ट्रकूंट छोट्रिंग राज्य करता था।5 उदेपुर प्रथस्ति में सीयक द्वारा खोट्रिग को हराये जाने का विवरण प्राप्त 1. प्रभावकचरित, पद्य 191-193, पृ 145 विककमकालस्स गए अउणत्ती सुत्तरे सहस्सम्मि । मालवर्नारिदघाडीए लूडिए मन्नछेडम्मि 1 276 ॥ घारानयरीए परिद्रिएण मग्गे ठिआाए अणवज्जे 1 कज्जे कथणिट्बहिणीए 'सुस्दरी' लामघिउजाए 1 277 11 -धनपाल, पाइयलच्छीनाममाला, (स ) बेचरदास जीवराज दोशो, बम्बई, 1960) 3... छ०02# दर्लड, ए3 वा, ए 422




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