काल चक्र | Kaal Chakra

Kaal Chakra by चुन्नीलाल मडिया - Chunilal Madiaश्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

चुन्नीलाल मडिया - Chunilal Madia

No Information available about चुन्नीलाल मडिया - Chunilal Madia

Add Infomation AboutChunilal Madia

श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

No Information available about श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

Add Infomation AboutShyamu Sainasi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डे घन्न है लाडकोर सेठानी जिसने छोटे देवर को सगे पेट जाये बेटे से भी सवाया मानकर पाला-पोसा । आज इस छोटे ने वेपार-बनिज और काम-धन्खे का सारा बोक उठाकर बड़े माई को निचिस्त कर दिया । इसको केवे है किस्मत वशराम मस्त होकर गीत गा रहा था । उसकी गोद में बेठा बटुक उछुल-उछलकर ऐसा सन्तोष अनुभव कर रहा था मानो घोड़े को वही हाँक रहा हो । भर नरोत्तम थोड़ी ही देर में ट्रेन से उतरने वाले अमरगढ़ के मेहमानों के विचारों मे तललीन हो रहा था । रास्ते में पड़ते वाले किसी गाँव के छोर पर खेलने वाले नंग-धघड़ ग बच्चों की शेतान टोली इस शानदार घोड़ागाड़ी को देखकर आनन्द से किलकारी लगाती भर कोई-कोई शरारती लड़का तो इस नई सवारी की सैर का मज़ा लूटने के लिए पीछे लटक भी जाता था । बटुक के लिए श्राज का दिन बड़े आनन्द का था । ओतमचन्द सेठ ने जब से यह बग्घी ली थी वशराम ने नन्हें बटुक को घोड़ा-गाड़ी गौर अपने-आप से मी इतना हिला लिया था कि नासमभऋ बालक सारा-सारा दिन गाड़ी में हो घूमा करता था । बाल-प्रेमी वशराम ने बटुक को गाड़ी में बठने का ही नहीं गाड़ी हाँकने का शौक मी लगा दिया था । इसलिए घोड़े की लगाम पकड़कर ही बट्ुक को सन्तोष नहीं हुभ्रा उसने जल्दी ही वशराम को हुक्म दिया चाबुक लाओ चाबुक । बुढ़े वशराम ने अपने बच्चा मालिक को खुश करने के लिए उसके नन्हें हाथ में चाबुक थमा दिया । अब तो बटुक और भी उल्लसित हो गया । चल घोड़े चल | कहता हुआ वह घोड़े की पीठ पर सपासप चाबुक फटकारने लगा । हाट-बाजार के काम से निकले हुए परिचित किसान गाड़ी हाँक रहे इस बाठक को पहचान कर कह उठते कौन बदुकमाई है न ? श्रौर फिर प्रसन्न होकर तारीफ करते वाह बहादुर वाह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now