हिंदी महाभारत विराटपर्व | Hindi Mahabharat Viratparv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75.34 MB
कुल पष्ठ :
742
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध् विराटपते वैशस्पायन जी बोले--इस तरह परस्पर श्पना अपना कार्य निश्चित करने के बाद उन्होंने पुरोहित धघौम्य के बुला कर सब हाल कहा और इस विषय से उनकी सम्मति माँगी । थौग्य ने कहा--हे भारत झापने अपने स्नेही ब्राह्मणों वाहनों अस्त शस्त्रों तथा श्रर्नि का जा प्रबन्ध किया है वह शास्त्र की विधि के श्रनुसार ही है | आपके और अर्जुन को द्रौपदी की रक्षा बढ़ी सावधानी से करनी होगी । इस लोक के व्यवहार को तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं ते भी सित्रता के अनुरोध से में आापसे कहता हूँ । क्योंकि सनातन काल से घर्म अर्थ ब्यौर काम का यही नियम रहा है। इसीसे मैं भी आपसे कहता हूँ । ध्यान से सुनिये । हे राजकुमारों व्यवहार-कुशल व्यक्तियों का भी राजा के यहाँ रहना बड़ा कठिन हो जाता है । अतः में आपको राजा के यहाँ जिस तरह रहना चाहिये सो बतलाता हूँ। सुनो । मेरे कहने पर चलने से राजा के यहाँ रहते हुए भी झाप लोगों पर कोई सक्कट नहीं आवेगा और आप सुख से रहेंगे । मानापमान सहते हुए भी किसो तरह आप लोगों के इस तेरहवें वर्ष में छिपे हुए रहना ही हागा । श्रज्ञातवास का समय बीतने पर चोदहवें वर्ष से झाप लोग प्रकट हो कर स्वाधघीनता से बिचरण कर सकेंगे । राजा से मिलना हो तो पहले द्वारपाल द्वारा राजा की आज्ञा मंगा कर अन्दर जाना । बिना झाज्ञा पाये सहसा अन्दर जा कर राजा से न मिलना । राजाओं का कभी विश्वास न करना । राज-सभा में जा कर ऐसे आसन पर बैठना जिस पर कोई दूसरा बेठने की इच्छा न करे । राजा द्वारा सम्मानित होने पर भी जो व्यक्ति राजा को सवारी शय्या शासन हाथी तथा रथों पर बेठने की इच्छा नहीं करता वहीं राजा के यहाँ रह सकता है । जहाँ बेठने से राजा के नीच विचार वाले दूतों के किसी तरह का सन्देद हो वहाँ न बैठने वाज्ञा ही राजमन्दिर में रह सकता हे । राजा के बिना माँगे श्रपनी सम्मति कभी न दो किन्तु चुपचाप उसकी सेवा करो ग्र समय आने पर अपना पुरुषा्थ दिखला कर राजा का सन्तुष्ट करो ।
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