गार्हस्थ्य शास्त्र | Garhasthaya - Shastra

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Garhasthaya - Shastra by लश्मीधर वाजपेयी - Lashmeedhar Vajpeyee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय गउहस्थी का प्रारम्भ स््री और पुरुष जब अपना बालपन और विद्याभ्यास समाप्त करके, विवाह के धार्मिक बन्घन मे बेँधकर, गूहस्थ बनते है तब से पदस्थी का प्रारम्भ होता है। गृहस्थी के प्रारम्भ और विवाह से बनिष्ठ सम्बन्ध है । इसलिए पहले इस बात का विचार करना चाहिए. कि ख्री-पुरुषों का विवाह-सम्बन्ध किस अवस्था मे और किस प्रकार होना चाहिए । वास्तव मे गृहस्थी चलाने से द्रव्य की अत्यन्त आवश्यकता होती है। इसलिए जब पुरुप मे इतनी विद्या बुद्धि और शारीरिक शक्ति छा जावे कि; वह अपनी गृहस्थी के लिए द्रव्योपाजेन कर सके, तभी उसको विवाह. करना, चाहिए यही बात खियो के लिए भी कही जा सकती है। ख््री मे जब वह सामर्थ्य आ जावे कि; वह गहरथी मे पुरुप के कमाये हुए द्रव्य का भली भाँ ति उपयोग कर सके; अपने पति को द्रव्य की आय-व्यय से उचित सम्मति और सहायता दे सके; और अपनी सन्तति के पालन-पोपण का भार सम्दालने योग्य शक्ति प्राप्त कर ले; तब उसको विवाह के बन्धन मे बंधना चाहिए । आजकल हमारे समाज की दूशा विवाह के सम्बन्ध मे बहुत ही शोचनीय है । बालक और बालिकाओ का विवाह ऐसी अवस्था मे कर दिया जाता है कि, जब उनमे गृरहस्थी के चलाने की शक्ति ही




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