हिंदी के कवि और काव्य | Hindi Ke Kavi Aur Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40.27 MB
कुल पष्ठ :
343
श्रेणी :
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No Information available about पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११. ) सुजान के साथ उसका विवाह कर दिया पर उसने कौलावती से प्रतिज्ञा कर ली थी कि बह चित्रावली के मिलन से विरोध न करेगी । कुमार कौलावती के साथ गिरनार पहुँचा और वहां चिन्नावली के भेजे हुए दूत से उसकी भट हुई और उसने उसका समाचार चित्रावली के पास पहुंचाया फिर किसी प्रकार वह योगी कुमार को लेकर रूपनगर की सीमा पर पहुँचाया झोर यह खबर चित्रावली को मिली । अब रूपनगर के राजा को चित्रावली के विवाह की चिंता सता रही थी । उसने चार चित्रकार राजकुमारों के चित्र लाने के लिये भेजे । इधर रानी हीरा कुमारी को खिन्न देख कर उसका हाल पूँछु रही थी पर वह अपने मन का भेद बताती नहीं थी । इसी समय सुन्नान को एक जगह बैठा कर वह दूत कुमारी को खबर देने झा रहा था । रानी ने उस माग में ही पकड़वा कर क्र करा दिया । पर वह पागल हो चित्रावली नाम ले लेकर भागने सगा । राजा तक ख़बर पहुँची । उसने भपजस के डर से इसे मरवा डालने की ठानी झौर इस पर हाथी छोड़वा दिया पर सुजान ने अपने बहुबल से इसे मार गिराया । इस पर राजा स्वयं इसे मारने चला पर इसी बीच एक चितेरा सागरगढ़ से एक कुमार का चित्र लाया जिसने सोहिलि को मारा था । देखने पर वह चित्र इसी का निकला । राजा ने उचित पात्र समझ कर चित्राचली का विवाह इसके साथ कर दिया | इसके कुछ दिन बाद विरददाकुज्त कौल्ावती ने कुमार की ख़बर लाने को हंस- मित्र को दूत बना कर भेजा । कुमार ने अपने पिता छोर कौलावती का स्मरण कर रूपनगर से बिदा ली और वहां से सागरगढ़ आ कौलावती को बिदा करा लिया ौर अपने राज्य को रवाना हुआ । पर रास्ते में असंख्य विज्न बाघाएं उपस्थित हुई । समुद्र में तूफान आया पर किसी प्रकार सब से बच कर वह जगन्नाथ पुरी में पहुँचे . जहाँ पुराहित काशी पाँडे से इनको भेंट हुई । वहां से पते राज्य में पहुँचे और शोक-संतप्र मावा-पिता सं मिले । दुःख से रोते-रोते गाता झंधी होगई थी पर इनके ाने की ख़ुशी में इसकी आँखें ठीक होगई और सुजान अपनी रानियों सहित अआसंदोपभोग करने लगा । इस कथा के सरांश से ही यह स्पष्ट हो जाता हे कि यह ाद्योपान्त काल्पनिक है और इसमें झनेक अस्वाभाविक र बेतुकी बातें भरी पड़ी हैं पर यह सब होते हुए भी कथा बड़ी रोचक बन पढ़ी है ्ौर कहीं भी जी नहीं ऊबता । इनकी प्रबंधन कुछ ऐसी हो पड़ी है कि बालक युवा बृद्ध योगी भोगी सभी वर्ग के क्ोग इसका आनंद ले सकते हैं । कषि स्वयं कहता है-- ... ४ बालक सुनत कान रस लावा | तंसुनन्द के मन काम बढ़ावा ॥ विरिघ सुनैँमन होइ गियाना । यह संसार धंधा के जाना ॥ जोगी सुने जोग पँथ पावा । भोगी कई सुख भोग बढ़ावा ॥ इच्छा तरु एक झाइ सोहावा । जेहि जस इच्छा तेस फल प.वा ॥
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