हिंदी शब्द सागर चौथा खंड | Hindi Shabda Sagar Chautha Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. नक्कू हैं । इसमें एक दूसरी का काटती हुई दो. सीधी जकीरें खींचते हैं श्ौर उनके हम चारों सिरों में से एक सिरे पर एक बिंदी दूसरे पर ढ तीसरे पर तीन श्र चाथे पर चार 8 बिंदियां बना दी जाती हैं । इनके ऋमश नक्की दूझा तीया श्र हल पूर कहते हैं । इसमें दो से चार 0 तक खिलाड़ी दोते हैं जो एक एक दांव ले लेते हैं । पक खिलाड़ी अपनी मुट्ठी में कुछ कौड़ियाँ लेकर झपने दावि पर मुट्ठी रख देता है । तब बाकी खिलाड़ी अपने अपने दाँव पर कुछ कोड़ियाँ लगाते हैं । इसके उपरांत वह पहला खिल्ञाड़ी अपनी मुट्ठी की कौड़ियाँ गिनकर चार का भाग देता है । जब भाग देने पर 9 कौडी बचे तो नक्कीवाले की २ बचें तो दूएचाले की ३ बचें तो तीएवाले की घोर कुछ भी न बचे ता पूरवाो की जीत होती है। जिसकी जीत होती है दूसरी बार वही मूठ क्ञाता है । यदि मूठ लाने वाले का दाँव आता है तो वह दाँव पर रखी हुई सब्र की कड़ियाँ जीत लेता है नहीं तो जिसकी जीत दाती है इसके उसे उतनी दी काड़ियाँ देनी पड़ती हैं जितनी उसने दाँव पर लगाई हें। । नवकी पूर । सक्कू-वि० [ हिं० नाक ] (५) बढ़ी नाकवाला । जिसकी नाक बड़ी है। । झपने आपको बहुत प्रतिष्ठित समकनेवाक्षा । जैसे यह भी वो बड़े नक़ू बनते हैं. ( बोलचाल ) । (२) जिसके चरण श्रादि सब लोगों के झाचरण के विपरीत हों । सब से अलग झ्ोर उल्टा काम करनेवाला जो प्रायः बुर समम्ता ज्ञाता है । जैसे हमें क्या गरज पड़ी है जो दम नक्कू बनने जाय | नक्तेचर-संज्ञा पुं० [ सें० ] (१) शुग्युक्ष । गूगल्ष । (२) राक्षस । (३) चार । (४) बिछी । (२) इत्लू । बि५ रात के समय विचरण करनेवाला । नक्त॑जात-संश्ञा पुं० [ सें० ] बहुत प्राचीन काका की एक प्रकार की शोषधि जिसका उर्लेख वेदों में है । नक्त-संज्ञा पुं० [ सें० ] (१) वह समय जब कि दिन केवल एक मुदर्े ही रद गया दे । बिलकुल संध्या का समय । (२) रात । (३) एक प्रकार का घत जा झगहन मद्दीने के शुक्ल पक्त की श्रतिपदा को किया जाता हे । इसमें दिन के समय बिलकुछ माजन नहीं किया जाता केवन्न रात को तारे देख कर सेजन किया जाता है । किसी किसी के मत से इस घ्रत में ठीक संध्या के समय जब कि दिन केवल मुहुत्त भर रद गया दो भोजन करना चाहिए । यह घ्रत प्रायः बति श्र विधवाएँ करती हैं । इस ब्रत में रात के समय विष्णु की पूजा 00 १३८ नक्द्या भी की जाती है। (४) शिव । (३) राजा प्रथु के पुत्र का नाम । वि० लड्जित । जो शरमा गया है । नक्तचर-संज्ञा पुं- [ सं० ] (१) रात को घूमनेवाला । (२) महददा- देव | शिव । (३१ रादस । (४) उल्लू । नक्तचारी-संश्ञा पुं० [ सं० नक्तचारिन्‌ ] (१) बिल्ली । (२) उल्लू । वि० रात के समय विचरण करनेवाला । नक्तमोजी-वि० [ सं० नक्तमोनित्‌ ] (१) रात को भोजन करने वाला । (२) नक्त नामक घ्रत करनेवाला । नक्तमाल-संशा पुं० [ सं० ] करंज बृूक्च । कंजे का पेड़ । नक्तमुखा-संज्ञा स्रा० [ सं० ] रात । नक्तत्रत-संज्ञा पुं० दे० नक्त (२ )। नत्त्तांघ-संज्ञा पुं० [ सं० ] वह जिसे रात को दिखाई न दे । बह जिसे रतींघी होती हे | नक्ताध्य-संज्ञा पुं- [ सं० ] थाँख का वह रोग जिसमें रात के समय कुछ भी दिखाई नहीं देता । रतोंघी । नक्ता-संशञा स्त्री० [ सं० ] (१ ) कल्ियारी नामक विपेक्षा पौधा । (२) दन्दी । ( ३ ) रात । नक्ताह-संज्ञा पुं० [ से० ] करंज चृूक्ष । कंजा । नक्ति-संशा स्त्री [ सें० ] रात । नक्द-संशा पुं० दढे० नकद । नक़-सं्ञा पुं० [ सं० ] (१ ) नाक नामक जक्षजंतु । (२) मगर नामक जल-जंतु । ( ३ ) घड़ियाल या. कुँभीर नामक जल-जतु | ( ४ ) नाक | नक्नराज-संद्ञा पुं० [ सं० ] (१ ) घड़ियाल । ( २) मगर | (३. नाक नामक जल्नजंतु । नक्रा-संज्ञा स्त्री० [ सं० ] नाक । नासिका । नक्ल-संज्ञा स्त्री० दे० नकका । नक्लठनवीस-संज्ञा पुं दे० नकब्ननवीस । नवक्लनवीसी-संज्ञा ख्री० दे० नकलनवीसी । नकल परवाना-संश्ञा पुं० दे० नकल परवाना । नकल बही-संदा श्री० पुं० दे० नकल बढ़ी । सक्झ-वि० [ अ० ] जो अंकित या चित्रित किया गया हो। खींचा बनाया या लिखा हुझा । मुद्दा०--मन में नक्शा करना या कराना न किसी के मन में काई बात अच्छी तरह बेठना या बेठाना । किसी बात का निश्चय करना या कराना । जैसे हमने यह बात घने मन में नकश करा दी है । नक्श दाना किसी बात का अल्छ्ली तरह मन में जम जाना । पूर्ण निश्चय छो जाना | र _. संज्ञा पुं० [ अ० ] (१ ) तसवीर । चित्र। ( २ ) खे।दुकर या कलम से बनाया हुआ बेक-बूटे था फूल-पतती झादि का काम ।




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