गीता का भक्ति योग | Geeta Ka Bhakti Yog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.53 MB
कुल पष्ठ :
458
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चलनेवाले भक्तोंको 'भक्तास्ते5तीव में प्रिया पोंसे अपना अत्यन्त
प्रिय कहकर अध्यायका उपसंहार किया ।
वारहवें अध्यायमें सगुण-उपासकोंका वणन' करके तेरहवें
अध्यायमें निगुण-तत््वकी उपासना करनेवालोंका वर्णन आरम्भ
किया | वारहवें अध्यायमें कहा था कि देहामिमान रखनेवालोंके छिये
नियुण-उपासना कठिन है । उस देहमामिमानकों दूर करनेके लिये
तेरहवें अध्यायकें आरम्भमें 'इद शरीरम' पर्दोंसे बतलाया कि यह
देह 'इदम्' . है और इसे जाननेवाला “अहम” ( स्वरूप .) इससे
सवधा भिन्न है । देहामिमान कम होनेपर नियुण-उपासना सुगमता-
पूवक चल पड़ती है । फिर भगवानने क्षेत्र-कषेत्रज् और. प्रक़ति-पुरुपके
विभागका वगन किया । फिर क्षेत्रकषेत्रजके संयोगसे सम्पूण सृष्टि
होनेकी वात वतलायी । अन्तमें क्षेत्रश्रेत्रकके भेदको तत्वसे जाननेक्रा
फल परमात्माकी प्राप्ति वतलाते हुए अध्यायका उपसंहार किया ।
चौदहवें अध्यायमें पुनः ज्ञानका विषय आरम्भ करके उसकी
महिमाका चणगन किया | फिर प्रकृति-पुरुषके संयोगसे संसारकी
उत्पत्तिका वर्गन किया । जीवात्मा प्रकृतिके युणोंसे बेंधता है; अतः
उन गुर्णोका तथा उनसे छूटनेकें उपायका वणन किया 1 गुणातीत
होनेकी त्रात मगवान् तेरहवें और चौदहवें अध्यायमें पहले भी
(१३। १८, २३; १४ | १९-२० ) कह चुके थे; परंतु
अजुनके प्रइन करनेपर भगवानूने अन्यमिचारी भक्तियोगको ही
गुणातीत होनेका सुगम उपाय बतलाया ( १४ । २६ ) । अन्यमिचारी
भक्तियोगका तात्पय है--केवल भगवान् ही इष्ट हों, प्रापणीय हों;
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