गीता का भक्ति योग | Geeta Ka Bhakti Yog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ घर] चलनेवाले भक्तोंको 'भक्तास्ते5तीव में प्रिया पोंसे अपना अत्यन्त प्रिय कहकर अध्यायका उपसंहार किया । वारहवें अध्यायमें सगुण-उपासकोंका वणन' करके तेरहवें अध्यायमें निगुण-तत््वकी उपासना करनेवालोंका वर्णन आरम्भ किया | वारहवें अध्यायमें कहा था कि देहामिमान रखनेवालोंके छिये नियुण-उपासना कठिन है । उस देहमामिमानकों दूर करनेके लिये तेरहवें अध्यायकें आरम्भमें 'इद शरीरम' पर्दोंसे बतलाया कि यह देह 'इदम्‌' . है और इसे जाननेवाला “अहम” ( स्वरूप .) इससे सवधा भिन्न है । देहामिमान कम होनेपर नियुण-उपासना सुगमता- पूवक चल पड़ती है । फिर भगवानने क्षेत्र-कषेत्रज् और. प्रक़ति-पुरुपके विभागका वगन किया । फिर क्षेत्रकषेत्रजके संयोगसे सम्पूण सृष्टि होनेकी वात वतलायी । अन्तमें क्षेत्रश्रेत्रकके भेदको तत्वसे जाननेक्रा फल परमात्माकी प्राप्ति वतलाते हुए अध्यायका उपसंहार किया । चौदहवें अध्यायमें पुनः ज्ञानका विषय आरम्भ करके उसकी महिमाका चणगन किया | फिर प्रकृति-पुरुषके संयोगसे संसारकी उत्पत्तिका वर्गन किया । जीवात्मा प्रकृतिके युणोंसे बेंधता है; अतः उन गुर्णोका तथा उनसे छूटनेकें उपायका वणन किया 1 गुणातीत होनेकी त्रात मगवान्‌ तेरहवें और चौदहवें अध्यायमें पहले भी (१३। १८, २३; १४ | १९-२० ) कह चुके थे; परंतु अजुनके प्रइन करनेपर भगवानूने अन्यमिचारी भक्तियोगको ही गुणातीत होनेका सुगम उपाय बतलाया ( १४ । २६ ) । अन्यमिचारी भक्तियोगका तात्पय है--केवल भगवान्‌ ही इष्ट हों, प्रापणीय हों;




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