महाकवि कालिदास | Mahakavi Kalidas

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Mahakavi Kalidas by रमाशंकर तिवारी - Ramashankar Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जरा नव्यच्त ( क ) जन्मकाल टूलहा हा हूँ जन [ने पय पा या नि कदियलगणा कालिदास भारतीय साहित्य के जाज्वल्यमान रत्न हैं । काव्य-ममज्ञों ने उन्हें कविता-कामिनी का विलास कहा है श्र प्राचीन कवियों की गणना के विघय में उन्हें किनिटिकाशिदित बता कर उनकी ठुलना में ठहरने वाले किसी श्रन्य प्रतिस्पर्धी कवि के ्स्तित्व की संभावना का प्रत्याख्यान किया है । किन्तु रस की अमृत सख्रोतस्विनी प्रवादहेत करने वाले तथा मारतीय संस्कृति के चिरंतन झ्रादर्शों को कान्तासम्मित शभिव्यक्ति प्रदान करने वाले इस सारस्वत कवि का जीवन-वत्त अच्यापि कुतूहल एवं झलुसान का विषय बना हुमा है । न तो कवि ने श्पने गन्थों में ऐसे सवमान्य उल्लेख सन्निविष्ठ किए हू जिनके आधार पर उसके जीवन की कहानी निर्मित की जा सकती है और न किसी इतिहास ग्रन्थ में ही उसके विषय में कोई निश्चित सामग्री उपलब्ध होती है । एसी अवस्था सें मिनननसिन्न विद्वानों ने कालिदास के जन्म के विपय में भिन्न-भिन्न मत प्रतिपादित किए हैं । ईसा पूव आठवीं शताब्दी से लेकर इसवी संवत्‌ की बारहवों शताब्दी तक के दो सह वर्षो के बीच उनका झाविभांव निश्चित किया गया है | प्रसिद्ध फ्रेच विद्वान दिपोलाइट फाश ( एफ क्र अधए८०७८ ) का कथन है कि कालिदास रघुवंश? में वर्णित अन्तिम राजा श्रग्निवण के मुत्यूपरान्त उत्पन्न होने वाले पुत्र के समकालीन थे इस प्रकार उनका समय ईसा के एूव आठवीं शताब्दी है । किन्तु यह मत स्पष्ट ही अमान्य हैं क्योंकि इसके पीछे किसी तास्विक आधार की कतमानता सिद्ध नहीं होती । इसी प्रकार यह किंवदन्ती कि कालिदास राजा भोज की सभा के कवि थे सबंधा तिरस्कृत हो लुकी है। भोज ईसा की ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में उज्जैन तथा धारा के अधघीश थे और उनका साहिंत्या- नुराग पंडित-परम्परा में चिरकाल से सम्मानित रहा हैं । संस्कृत के बल्लाल कवि द्वारा पुरा कवीनां. गणुनाप्रसंगे कनिष्टिकाधिष्टितकालिदासः | अद्यापि . तचुल्यकवेरमावादनामिका साथवती . बसूव ॥




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