ललिता | Lalita

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Lalita by यज्ञदत्त शर्मा - Yagyadat Shrma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ललिता है कहां चली गई थीं ललिता 1 पंकज ने पूछा । फूल लेसे | ललिता ने उत्तर दिया । ्रागई बेटी झाज बड़ी देर करदी तुमने । रासनाथ ने ललिता की झावाज़ सुन कर कहा कहां चली गई थी शभ्राज श्राज फूल लेने ? पंकजें बाद तुझे खोज रहे थे । देर हो गई पिता री | आज जरा दूर गई थी । गंगा के पारवाले बाग में चली गई थी । इधर से गंगा को पार करके चली गई परन्तु ज्योंही लौटी प्रो देखा कि गंगा मे श्रधिक जल श्रा गया । इसलिए पुल से होकर श्राना पड़ा । तभी इतनी देर हो गई । इतनी दूर फूल लेने न जाया कर बेटी रामनाथ ने कहा बेचारे पंकज बाबू कितने दयालू हैं । पूजा के लिए तु फूल लाने को मना तो नहीं करते । ललिता चुप रही । प्राज पूजा को देर ही गई । फुल लेकर रामनाथ पूजा पर जा बैठा । पंकज कुछ देर ठहर कर धीरे से घर से निकल गया । ललिता शीघ्रता से घर से बाहर निकली । पंकज काफी दूर जा चुका था | दक्ति न होते हुए भी ललिता दौड़ी जरा सुनिए तो सुनिए जरा श्राप चले ही जा रहे है ज़रा सुनिए तो । मुक्त से कह रही हो कुछ ? पंकज ने रककर पूछा । जी | कहिए पंकज खड़ा हो गया । इतनी जल्दी क्या थी श्रापको ? कही. मित्र-मंडली में जाना हो तो मैं श्ापकों नहीं रोकना चाहती । तीखे व्यंग के साथ ललिता में कहा | नहीं मैंने सोचा कि शायद ललिता को भभी स्नान करने जाना




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