मारवाड़ का इतिहास | Maarvaad Kaa Itihaas

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Maarvaad Kaa Itihaas by पण्डित विश्वेश्चरनाथ रेड - pandit vishveshcharnath Red

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३९. महाराजा मानसिंहजी यह महाराजा विजयसिंहजी के पौत्र और युमानसिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म बि० सं० १८३९ की माघ सुदि ११ (ई० स० १७८३ की १३ फ़रवरी ) को इआ्आा था । पहनने लिखा जा चुका है कि वि० सं० १८५० के भ्षाढ़ ( ई० स० १७४३ की जुलाई ) में जिस समय इनके चचेरे भाई भीमसिंहजी गद्दी पर बैठे उस समय यह जोधपुर से लोटकर इधर-उधर के गौँवों को लूटते हुए जालोर चले गए आर वहां के दुर्ग का आश्रय लेकर महाराजा भीमसिंहजी की मेजी हुई सेना का मुक्नाबला करने लगे | वि० सं० १८६० के कार्चिक ( ई० स० १८०३ के अक्टोबर ) में महाराजा मीमसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । उनके पीछे पुत्र न होगे के कारण उनकी जालोर की सेना के सेनापतियों-मंडारी गंगाराम और सिंधी इन्द्राज ने युद्ध बंद कर मानसिंदजी से जोधपुर चलने और वंशक्रमागत राज्य का अधिकार ग्रहण करने की प्रार्थना की । इसीके अनुसार जिस समय यह जालोर से खाना होकर सालावास पहुँचे १. मद्दाराजा विजयसिंदजी की पासवान (उपपल्नी)-गुलाबराय ने अपने पुत्र तेजसिंद के मर जाने पर मानसिंहजी को अपने पास रखलिया था । परन्तु महाराजा विजयसिंदजी के मारवाड़ के सरदारों को समकाने के लिये जाने पर जब वि० सं० १८४६. के वैशाख ( ई० स० १७६२ के अप्रेल) मैं उनके पौत्र ( फृतैसिंहजी के दत्तक पुत्र ) भीमसिंहजी ने जोधपुर के किले पर अधिकार करलिया तब शेरसिंह ( जिसको पासवान के कहने से महाराज अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे ) और मानसिंहजी जालोर के किले में मेज दिए गए । अगले वर्ष शेरसिंद तो लौट कर जोधपुर चला झ्ाया परन्तु मानसिंदजी ने श्रपना निवास वहीं रक्‍खा । कुछ दिन बाद महाराजा विजयसिंहजी ने वह प्रान्त इन्हें जागीर में दे दिया । इसके बाद जब महाराजा भीमसिंहजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे तब उन्होंने मानसिंदजी को पकड़ने के लिये एक सेना मेज दी । इसी के घिराव से तंग आकर वि० सं० १८६० की वेशाख सुदि १ (ई० सन्‌ १८०३ की २२ अप्रेल) को छु०ह




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