धन्वन्तरि शिशु रोगांक | Dhanvantri Shishu Rogank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५० प्लीहा के रोग और उनकी चिकित्सा --कविराज बह्यानन्द ' चन्दूचंदी 1 आयुर्वेदिक, पएंलोैथी ए20 सं. कस ...'. «यूनानी मताबुसार रोग का निदान, रुक्षण तथा चिकित्सा का सुन्दर वर्णन किया, गया है । ' ,. 528, . 'श१.फलसंरशषण विज्ञान ( एप काटा एकिणा जे--डा० युगलकिशोर गुप्त । फ्ों से संरक्षण-क्रिया के _ *- अतिरिक्त फर्ढो-की चटनी, अचार, मुंरब्चा आदि बनाने की विधि भी समझाई ,गई है।. - दे ५२ चस्तिशलाकाघवेश ( पनिमा और केथेटर )--पुस्तक छात्रों, बैद्यों तथा इस विपय के अभ्यासियों के. '- » .. छिए चहुत ही उपयोगी है। .... '._ ० ९ वोसवी झाताव्दी की ओपरधियाँ--ढा० सुकुन्द्स्वरूप वर्मा । शीघ्र प्राप्त होगी ५४ भारतीय रसपद्धति--कविराज भन्रिदेव गुप्त । भारतीय रसकाख्र में धातुओं भादि का शोधन मारण एक .. ' - _.... मदर का विपय है । इस छोटी-सी पुस्तिका में यह सरखता से समझाया गया है श-५० ५५ मावप्रकादा--मूल मात्र । पूर्वाद्ध दे-०० सध्यरमोत्तर खण्ड ७-०० . संपूर्ण. १०-०० ५६ भावप्रकाश ज्वराधघिकार--नवीन चेज्ञानिक विद्योतिनी भाषा टीका परिशिष्ट सहित । छ-५० न० भावय्रकादा निघण्ट-लवीन संस्करण) सम्पादक-ढा० गंगासदाय पाण्डेय ए. एम, एस. । आयुर्वेदिक के , ' कालेजों के पाव्यक्रम को ध्यान में रखकर इस निघंद्ध भाग की नवीन व्याख्या प्रस्तुत की गई है । ९-०० ५८ मिंपकू कमंखिद्धि--ढा० रमानाथ द्विवेदी द कौ यन््रस्थ *५९ भेल सहिता--शरीं गिरिजा दयाछु शुक्क 'कृत टिप्पणी सहित । शोधएू्ण संस्करण । । १०-9० ६० मदनपाल निघण्टु-मूछ 1 टिप्पणी सहित ।....... श-०० ६५ सर्म-विज्ञान ( सचित्र ) जाचार्य ,रामरक्ष पाठक । आयुर्वेद में वर्णित १०७ सर्मो की सचित्र विस्तृत ::“ ,.. व्याख्या की गयी है 1 . अ का ३-५० ६२ माघच निदान--वेद्य उमेशानन्द दाखत्री कृत सुधालहरी संस्कृत टीका सहित । अ .'. यंन्त्रस्थ “३ मांवच निदान--असर्वाह्सुन्दुरी हिन्दी टीका सदित थ के #, _ ५० ६४ माधव निदान--मधंकोप संस्कृत व्याख्या, मनोरमा हिन्दी टीका सहिति। ,... '” ' ..... झ-०० दे सूत्र के रोग-जढा० घाणेकर । (ं868868 एव प््लेश6, पांणक् 8पर्वाोण 00 धो ०पे -+.: 'पीड68865' ) मूचचिज्ञान सम्बन्धी सर्वश्रेष्ठ नवीन प्रकॉिन । ः 'दू-०० ' १९६ यकृत के रोग धर उनकी चिकित्सा--वेध श्री सभाकान्त झा । इसमें यकृत, उसकी रचना, क्रियां *' उसके चिकार, निंदान, पूर्वरूप, संप्राप्ति, चिकित्सा, पित्ताशय और उसके विकारों के घर्णन श-५० १७ योग-चिंकित्सा-'भन्रिदेव गुप्त विद्याठंकार । रोग'की, कौन सी अवस्था में, कौन-कौन सी ओपधियाँ _. 7. « ”” किस अनजुपान से किस समय व्यवहार की जां सकती हैं यह इस पुस्तक का विपय है। दे ५०. १८ योग्रलाकर--सूल 1 गुटका संस्करण । जनरल ः ही ददेन०० ' “१९ थोगरलाकर--विद्योतिनी हिन्दी टीका सहित । कायचिकिस्सा में जिन-जिन वातों को ज्ञान . आवश्यक * 7. है उन विपयों की आश्रय निधि इस अन्य में भरी पढ़ी है। ' .. , की इट-०८- ७० रतिमजरी--गध-पथास्मक हिन्दी अनुवाद संदितं.... « '. ०, ०-४० ' छँं-रक्त के रोग--ढा० घाणेकर। नवीन ,लावूसखि । 7 दे ५, शु०-6००0 .' ७२ रखरखसमुं्यय--सुरनोज्वला हिन्दी टीका सहित । भर्मिनव संस्करण । थ .. हु०-फ७ + * ७३' रसरलसमुच्यय”--मूछ । टिप्पणी सहित ।.... ' सूख्य सुर्भ संस्करण दे-००.... , उत्तम संस्करण देख «' ७४ 'रखादि परिज्ञान--चयोदूद्ध एवं “अनुभवी 'ठेखक आयुर्वेद बृहस्पति पं० जगन्नाथप्रसाद , शुक्त ने 'ूस द ' * पुस्तक में पट रखें के संबन्ध में, पूर्ण विवेचन तथा “उसके क्रमिंक विकास का सरल भापा में -.. ... ,”-' न बज ' : घ्90 अतिपादन कियां हैं बुक त ही




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