हिंदी संत साहित्य | Hindi Sant Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.27 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about त्रिलोकीनारायण दीक्षित - Trilokinarayan Dikshit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समकालीन परिस्थितियों श्३
इसीलिए उन्होंने प्रेम, शान्ति, सदाचार तथा विद्ववन्धुत्व का सन्देदा जनता
में प्रसारित किया | थ
समाज जनता की समष्टि की दूसरी सज्ञा है । समाज का उत्थान अथवा
पतन, जनता का उत्थान अथवा पतन है । समाज की उन्नति जनता की उन्नति
है । जन-जीवन की प्रतिच्छाया समाज को आच्छादित करती
सामाजिक है। देश की परिस्थितियों से सामाजिक परिस्थितियों का
परिस्थितियाँ . निर्माण होता है । इन पॉच सौ वर्षों की अनिश्चित राजनीतिक
परिस्थितियों से जन-जीवन शोषण, उत्पीडन तथा अत्याचारों
की करुण गाथा वन गंया |
मुहम्मद विन कासिम के आक्रमण से छेकर ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के सस्थापन
तक भारतीय जीवन निरन्तर उत्पीडित होता रहा । अतः इन पॉच सो वर्षों मे
भारत की सामाजिक परिस्थितियाँ भी गोचनीय रही |
सव्तनत-काल में शासकों की इच्छा ही सर्वोपरि थी । हिन्दुओ का अस्तित्व
उस समय भी सुरक्षित न था । अत्याचारों तथा उत्पीडन के नैराश्य ने हिन्दुओ
के धार्मिक विदवास की जड़ों को हिला दिया । हिन्दू और मुसलमान कभी एक
न द्दो सके क्योंकि उनके सिद्धान्तों में भेद था । इसलिए समाज दो वर्गों में
विभाजित था--(१, मुसलमानी-समाज, (२) हिन्दू-समाज |
मध्य-युग में विलासिता का राज्य था | प्रजा की श्रम से अर्जित कमाई
सुल्तानों तथा अमीरों के ठाठ-बाट तथा चिलास पर व्यय होती थी । प्रजा का
हितेषी कोई भी ने था । प्रजा पूर्णतया उपेक्षित तथा दरि-
मुसखलमानी- द्रता से अभिगस जीवन व्यतीत कर रही थी । योग्य मुस॒ल-
समाज... मान शासक-वर्ग मे मिल जाते थे तथा साधारण मुसलमानों
के लिए खानकाद्द खुले थे जिनमें उनके देठ॒ भोजन की
व्यवस्था थी । इसलिए सुसलमानों को कुछ भी परिश्रम अथवा व्यवसाय नहीं
करना पड़ता था । विलासिता मुस्लिम-समाज की अभिन्न अग बन गई थी |
मध्य-युग असमानता का समय था । सन्नी तथा शिया मुसलमानों में धार्मिक
एवं सामाजिक मेद था । मुसलमानों मे दास-प्रथा का प्रचलन था 1 अनेक
दासो का क्रप-विक्रय प्रतिवर्ष होता रहता था । राजकीय दढासो की संख्या
बहुत अधिक थी । जिस व्यक्ति के पास अधिक दास होते थे, वह अधिक धनी
व्यक्ति माना जाता था । दासो की दया अति शोचनीय थी । दासियों को तो
काम-क्रीडा का साधन भी बनाया जाता था । व्यमिचार का बोलवाला था |
इस युग से हरम में अधिक-से-अधिक सुन्दरियो को रखने का म्रचलन था |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...