महाराष्ट्र - जीवन - प्रभात | Maharashtra Jivan Prabhat

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Maharashtra Jivan Prabhat  by रमेशचन्द्र दत्त - Ramesh Chandra Dutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा परिच्छेद सरयबाला भाल-भाग दमकत सरयू के कुम कुम टीका नीको । अ्क्षत सहित वुन्दिका साहत मानों पति रजनी को ॥ भोहें कुटिल कमान अग्रसी श्याम रेख रुचि पेनी। ता अधघ बरुनी की छुबि देखेका अस है खरग-नेनी ॥ द -बर्शी हंसराज 0: | लेदार से बिदा लेकर रघनाथ, भवानी देवी के 'ठा पक लि मन्दिर की झोर चले । शिवाजी ने जब इस दुग का का जय किया था तब उसके थोड़े ही दिनों बाद उसमें पक देवी की प्रतिमा स्थापित कर दी थी और अम्बर देश के एक कुलीन ब्राह्मण का बुला- कर देवी की सेवा के लिये नियुक्त कर दिया था । यही कारण हे कि युद्ध के दिनों में बिना देवी की पूजा किये हुए शिवाजी कोई काय्ये झ्ारम्भ नहीं करते थे । रघुनाथ जवानी की उमंगे। से परिपूण ही श्रानन्द के साथ शपने कृष्णकेशों का सुधारते हुए झा रहा था श्र साथ ही युद्ध का एक भावपूण गीत भी गाता जाता था । ज्यों ही वह मंदिर के पास पहुँया कि झचानक उसकी दृष्टि मंदिर की निकटवर्ती. छुत पर पड़ गई । सूय्यें भगवान श्रस्ताचल पार कर चुके थे, परन्तु पश्चिम दिशा के श्राकाशमराडल में अभी आपकी झाभा शिल मिला रही थी । पक्षिगण श्रपने बसेर ढू ढ़ रहे थे । रघुनाथ भी




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