आयुर्वेदिक विश्वकोश | Aayurvedik Vishav Kosh
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.95 MB
कुल पष्ठ :
748
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वैद्यराज बाबू दलजीत सिंह- Vaidyaraj Babu Daljeet Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छांघिका-स ज्ञा खी० [.स० स्परी० (१) राधि।
छंघिका <णर
रात! ( २ ) झाँख का एक रोग ।
अँघधियार; सूँ घियारा-सश्ञा पु० [ स'० झन्घरार,
प्रा० सघय र हु [ स्त्री० से चघियारी ] (११ घेरा।
सघकार | तम । ( २) छघुघकापन । धुल]
चि० (१0 प्रकाश रद्वित | अझघेरा | तमाच्छादित |
(२) घुँघला | देन “अंधेरा”
डा घियारी कोठरी-स छा स्त्री० (3 . अघेरा छोटा
कमरा | ( र य पेट । उद्र | गर्भस्थान । कोख |
घरन | ही
झघुल-स'ज्ञा पु० [स० भन्धुल ] दे० 'वयन्घुन * |
दं घेरा-स'ज्ञा पु ० [ स'० भन्वकार, मा० चघयार 3
[ स्न्रो० अघेरी ] ( १ ) सघकार । तस |
प्रकाश का थ्रभाव । उजाले का उत्तटा |
(२) घुवलापन | घुघि | (३ छाया । परदाई |
( ४ ) उदासी । उत्साइदीनता | शोक |
चित (१) सघफारमय | प्रकाश रदित ।
समायछादित । विना उजाले का |
घ्रचष्ठा
एक साड़ी जो दिसालय शोर नीलगिरि पर
डोती है । इसकी जढ़ धौर छाल से बहुत ढ४ी
अच्छा पीला रंग निकलता हे जिससे कभी-कभी
चमदा मी रगते हें | इसके फलको ज़रिश्क
कहते हैं । इसके बीजसे तेल निकलता है। इसकी
नरूड़ी जिसे दारुददद वा दारुइतदी कहते हें
ब्ोपथियों में काम ध्ाती है । इसकी जढ़ शोर
लकबी से एक प्रकार का रस निकालते हैं, जो
रसचत वा रसौत कहलाता है |
'मचरवबेलि-स ज्ञ' स्त्री [ स'० स्री० ] (एप४०ए७8
16165 20 अकाशपेल ) झाकाशबेल | ्रांकारा-
जे
घोर । चमरबवेख |
बाघरमणि-सशा पू*० [स० पू०] फाकाशके मणि,
सूय्ये |
ब्ूँ चराइई-स'ज्ञा स्थ्री० [स*० 'घाल्लमामनराजीस््पंक्रिं]
सास का घगीचा | धमकी बारी । नौरंगा ।
'ेँ चराव-सज्ञा पू०. [स'० भाग्ररानी | आम
का घगीचा |
घेरा की जड़-सज्ञा खी० [ देश० ] विक्षायती | 'छांबरंत-सज्ञा पु० [स०] (१). कपपे
मेंहद्दी की जड़ ।
व्घ्-संज्ा इ'० [स० पु] बहेलिया | ब्याघा |
शिकारी | |
ाव-स'ज्ञा स्त्री० दे० “सवार ।
संज्ञा पू'० [स० झाम्र, पा० अच ] पास का द
पेढ़ । व #एछु०. ५00. ( फेक छाि1'8,
फतीएिक, ते
वब्मचिक-स'ज्ञा प_'0 [स'० भम्यका] दे० *थिम्यक ।
ब्'बकरज- बं० | ( १०७8 छीकोणाक थे
उर करकष | करन्जसेद । इं० मे० मे० !
बरीप-सज्ञा
का छोर । (२) चद् स्थान जहां ाकाश
पृथ्वी से मिला हुआ दिखाई देता हे | ज़ितिम |
प'०. [स० प०,. फ्ली० |
(1) माद। (२) व सिट्टी का बर्षन निसमें
भवभ जा गरम चालु डान्षकर दाना भनते हैं ।
(३) सूर्य का नाम । ( ४) किशोर अर्थात्
११ चपे से छोटा पाल | ( ₹ ) भामदे फा फदा
दर पेद । 'अस्बाद़ा । ( 900एता88 है क्तन
दांत, आए ६ ) विषय (७ ) शिव | ( मे 2
'झनुताप [ परचात्ताप |
व्चर-स'ा पू_० [स'० क्री०] (१) चस् । कपद़ा । ! ब्म'बरीसक-स'ज्ञा पू'० [स०्झधरीप] भाव |
पट । (२) स्त्रियों के पदननेकी एक प्रकारकी
एकरंगी किनारेदार घोती । ( ३ ) साकाश |
ब्ासमान (४) कपास | (४) एक सुगर्घित चस्तु
( ऊै पा 00185 . । दे० शाम्बर | ( ६ 2
एक इन | ( ७ 2 शन्नक घातु । भयरक । 1.10
( फिट ते । (मज़े थखत | सने०्! (5)
यादव | मेघ । ( कच०
द
झाबरवारी-सज्ञा पू० [ स० 1 दारइरिद्रा । दारू
इन्द । चित्रा | ( 267098118 क818108 2
भरसाये | -डिं० |
ँ यली-स शा प० [ देश०] एक प्रकार का गुजराती
कपास जो ढोलेरा नामक स्थान से होता है
झबघ-सक्वा पू० [ स'० पू.० ] [ स्त्री० अब
दे० *दम्पप्टम्ष्ठे” ।
घ्बपघकी-स का स्त्री दे० “अबष्ठा ।
उबप्रा-सज्ञा स्त्री० [ स'० स्प्री०
1(1+3 घाव
को स्त्री। (२) पक काता को नाम | दे०
सम्बद्ध” ||
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