आयुर्वेदीय विश्व कोष भाग 2 | Ayurvediy Vishv Kosh Bhag 2

Ayurvediy  Vishv  Kosh Bhag 2 by श्री बाबु दलजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Daljit Singh Ji Vedhश्री बाबु रामजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Ramjit Singh Vedh

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

श्री बाबु दलजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Daljit Singh Ji Vedh

No Information available about श्री बाबु दलजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Daljit Singh Ji Vedh

Add Infomation AboutShree Babu Daljit Singh Ji Vedh

श्री बाबु रामजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Ramjit Singh Vedh

No Information available about श्री बाबु रामजीत सिंह जी वैध - Shree Babu Ramjit Singh Vedh

Add Infomation AboutShree Babu Ramjit Singh Vedh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मे धक्रकपाकेव गपोव्रिप्रसइ कफ कहतसकफ व केन्यीजाइकेक नरक रस्कतापिवेननकष्शरप्मलरग्ररभम्मरपनर अ न्ज ऊतक पक बज प्रजा की याफ़ओं इक मकेमेक केचतभा बम पाक लककचकयधकाम कहकमनेनकेम कक गम न डा-सक्ञा ए ० [ सं० झंढ ] [वि० अर डंल ) बच्चों को दूघ न. पिलानेवाले जन्तुझ ( मादा गर्माशय से रह्पन्न गोल पिंड जिसमें से पाछे उस जीव के झनुरूप बच्चा बनकर निकलता हू | _.... चह गोल दस्तु जिसमें से पत्तों, जलचर आर मी सरीसखूप झादि अडढज जावों के बच्चे फूटकर हा _......... निकलते हैं | बज़त-झ० । घिं० दे० “छिरडा | च'डाकषशी पेशी-स ज्ञा सी» [स० ख्री० ] पेशी हि विशेष | ( फप5016 0प़०्छाएक्0०1पाए न... गुष्ठ8प5 बदनजनपनपरयपस्थव गए दे० ' झर्डाकार” | पक या-सज्ञा प.० [ देश० ] बाज्रे की पकी हुई न हे बाल | 'डी-संज्ञा खी० [सं० एरण्ड ] (9 ) रेंडी। . रंड़ के फल का बीज । [१101तघ5. ९८शापाा पर | 1185 (3७७४: एप (85007 0 17010 (४) रेंढ वा. पएरंड का पेइ.. 00085 . (/0क1फापाएए8 (11९९७ 0 07 011 )1 (३) गंधमाजररों। कक बम डवारी-सज्ञा खी०प स'० रुछु!टा टुकड़ा कशकार की बहुत छोटी भटक |... अ'डेल-वि० [ दि अंडा ] जिसके पेटमें अठ हों। :... झडेबाली 1... कमी कक बात: करण-सज्ञा प.०. | ख० क्ञी० ] (१. चह _सीतरी इंद्रिय जो सकरप दिकल्प, निश्चय ,स्मरण तथा सुख दुःखादि का. अनुभव करती हैं। काय. सेद से इसके चार विभाग हैं-- .... ........ मन, जिससे स करुप मा दर ये कमी ल्‍ ः ः भ की दी ८2८ कम बककाकफरक दरमेकति ककसमत निक कम कक सम म्वकेनकफियसमिककेलकपम गत मवफ्रवाफकाजिनकमकमगा बात: पटी-स'ज्ञा सत्री० [ स'० स्श्नी० बह छुानने के लिए छुनने से रक्खा हो | अतः परिधि-स ज्ञा खी० [ स ० ] किसी परिधि वा घेरे के भीतर का स्थान | तर तःशल्यनवि० [ स० ब्रि० | भीतर सालन घाला | गाँसी को तरह मन में सुमनेबाला | समभेदों । अतः: संज्ञानस जा प्‌ स८ स्था० न जा जीव अपने सुख दुश्ख के झनुभव को प्रगट न कर सके; जेसे बृत्त ......... ब्यडाकार-दि० [स'० ज्रि:र ] अढाकृति । (0४८1) . अतःसत्वा-स ज्ञा ख्री० दे० “अन्तःसत्वा अत: स्वेद-सज्ञा प. ० [ स० प० ) वह जिसके... भीतर स्वेद वा मदजल हो । हाथी | ं उत-सज्ञाप, ० [स०८ प्‌; क्यीं० 1 [ वि० धर डी] | क पु रे विकल्प ट्ाता हद डी न ः ब्'तक-स ज्ञा प.'०. [ सं०्प ०» ] (3. अत .. (हे) यमराज | काल । ( ४ गे _घ्रलषयमें सबका स हार करता है | (३) शिव अतकर, अ'तकत्ता, अ'तकारी, अतकृत-वि० ड र के श् हि. हि डर १५. कहा केक कक ककज किम १५4 के ते हि नापसिपरि कक मे मेकीपर था कपवेफी 2 15 7 कक क़िमि फ़डक के गैर मे में सोमरप जब जन जे झ्तिम, शत्य ] (१) वह स्थान वा समय जहाँ से किसी चस्तु का शत हो | समाप्ति ब्रखीर । अझवसान | इति । ( २) शेप भाग अतिम आग [| पिछुला अंश । ( ३.) पार छार 1 सीमा | दृद । झवाधि । पराकाष्ठा (४. अंतकाल । सरय । खत्यु । नाश विनाश । ( के परिणाम 1. फल | नताजा | ज्ञा प. ० [स० अन्तर] अ तःकरण | हृदय | अकार्सत्यिलक भ्ड् करनेवाला | नाश करनेवाल्ता | ( २ ) सत्य जो कि प्राणियों के जीवनका अत करती है | सोत इश्वर, जो कि ,, किक का. एक भेद दे थक स०५. हार करनेवा का त्रि० ] शत करनेवाला | |[_ मार डाक्षनवाला |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now