आयुर्वेदिक विश्वकोश | Aayurvedik Vishav Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aayurvedik Vishav Kosh  by वैद्यराज बाबू दलजीत सिंह- Vaidyaraj Babu Daljeet Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वैद्यराज बाबू दलजीत सिंह- Vaidyaraj Babu Daljeet Singh

Add Infomation AboutVaidyaraj Babu Daljeet Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छांघिका-स ज्ञा खी० [.स० स्परी० (१) राधि। छंघिका <णर रात! ( २ ) झाँख का एक रोग । अँघधियार; सूँ घियारा-सश्ञा पु० [ स'० झन्घरार, प्रा० सघय र हु [ स्त्री० से चघियारी ] (११ घेरा। सघकार | तम । ( २) छघुघकापन । धुल] चि० (१0 प्रकाश रद्वित | अझघेरा | तमाच्छादित | (२) घुँघला | देन “अंधेरा” डा घियारी कोठरी-स छा स्त्री० (3 . अघेरा छोटा कमरा | ( र य पेट । उद्र | गर्भस्थान । कोख | घरन | ही झघुल-स'ज्ञा पु० [स० भन्धुल ] दे० 'वयन्घुन * | दं घेरा-स'ज्ञा पु ० [ स'० भन्वकार, मा० चघयार 3 [ स्न्रो० अघेरी ] ( १ ) सघकार । तस | प्रकाश का थ्रभाव । उजाले का उत्तटा | (२) घुवलापन | घुघि | (३ छाया । परदाई | ( ४ ) उदासी । उत्साइदीनता | शोक | चित (१) सघफारमय | प्रकाश रदित । समायछादित । विना उजाले का | घ्रचष्ठा एक साड़ी जो दिसालय शोर नीलगिरि पर डोती है । इसकी जढ़ धौर छाल से बहुत ढ४ी अच्छा पीला रंग निकलता हे जिससे कभी-कभी चमदा मी रगते हें | इसके फलको ज़रिश्क कहते हैं । इसके बीजसे तेल निकलता है। इसकी नरूड़ी जिसे दारुददद वा दारुइतदी कहते हें ब्ोपथियों में काम ध्ाती है । इसकी जढ़ शोर लकबी से एक प्रकार का रस निकालते हैं, जो रसचत वा रसौत कहलाता है | 'मचरवबेलि-स ज्ञ' स्त्री [ स'० स्री० ] (एप४०ए७8 16165 20 अकाशपेल ) झाकाशबेल | ्रांकारा- जे घोर । चमरबवेख | बाघरमणि-सशा पू*० [स० पू०] फाकाशके मणि, सूय्ये | ब्ूँ चराइई-स'ज्ञा स्थ्री० [स*० 'घाल्लमामनराजीस्‍्पंक्रिं] सास का घगीचा | धमकी बारी । नौरंगा । 'ेँ चराव-सज्ञा पू०. [स'० भाग्ररानी | आम का घगीचा | घेरा की जड़-सज्ञा खी० [ देश० ] विक्षायती | 'छांबरंत-सज्ञा पु० [स०] (१). कपपे मेंहद्दी की जड़ । व्घ्-संज्ा इ'० [स० पु] बहेलिया | ब्याघा | शिकारी | | ाव-स'ज्ञा स्त्री० दे० “सवार । संज्ञा पू'० [स० झाम्र, पा० अच ] पास का द पेढ़ । व #एछु०. ५00. ( फेक छाि1'8, फतीएिक, ते वब्मचिक-स'ज्ञा प_'0 [स'० भम्यका] दे० *थिम्यक । ब्'बकरज- बं० | ( १०७8 छीकोणाक थे उर करकष | करन्जसेद । इं० मे० मे० ! बरीप-सज्ञा का छोर । (२) चद् स्थान जहां ाकाश पृथ्वी से मिला हुआ दिखाई देता हे | ज़ितिम | प'०. [स० प०,. फ्ली० | (1) माद। (२) व सिट्टी का बर्षन निसमें भवभ जा गरम चालु डान्षकर दाना भनते हैं । (३) सूर्य का नाम । ( ४) किशोर अर्थात्‌ ११ चपे से छोटा पाल | ( ₹ ) भामदे फा फदा दर पेद । 'अस्बाद़ा । ( 900एता88 है क्तन दांत, आए ६ ) विषय (७ ) शिव | ( मे 2 'झनुताप [ परचात्ताप | व्चर-स'ा पू_० [स'० क्री०] (१) चस् । कपद़ा । ! ब्म'बरीसक-स'ज्ञा पू'० [स०्झधरीप] भाव | पट । (२) स्त्रियों के पदननेकी एक प्रकारकी एकरंगी किनारेदार घोती । ( ३ ) साकाश | ब्ासमान (४) कपास | (४) एक सुगर्घित चस्तु ( ऊै पा 00185 . । दे० शाम्बर | ( ६ 2 एक इन | ( ७ 2 शन्नक घातु । भयरक । 1.10 ( फिट ते । (मज़े थखत | सने०्! (5) यादव | मेघ । ( कच० द झाबरवारी-सज्ञा पू० [ स० 1 दारइरिद्रा । दारू इन्द । चित्रा | ( 267098118 क818108 2 भरसाये | -डिं० | ँ यली-स शा प० [ देश०] एक प्रकार का गुजराती कपास जो ढोलेरा नामक स्थान से होता है झबघ-सक्वा पू० [ स'० पू.० ] [ स्त्री० अब दे० *दम्पप्टम्ष्ठे” । घ्बपघकी-स का स्त्री दे० “अबष्ठा । उबप्रा-सज्ञा स्त्री० [ स'० स्प्री० 1(1+3 घाव को स्त्री। (२) पक काता को नाम | दे० सम्बद्ध” ||




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now