चाकर गाथा | Chakar Gatha

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Chakar Gatha by विमल मित्र - Vimal Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. मह्लिक के बारे में कह रहा है। उसके आजकल पर सिकल आये हैं सं पं | के इतनी देर से गुलमोहर अली घोड़ागाड़ी की छंत पर बैठा था । अव वह नीचे उतर श्राया भौर वो ला हुजूर यह बिल्कुल असली सैना है । अब दुलभवाबू भी मना के करीब खिसके । बोले दिखा तो जरा अच्छी तरह देखें । शिकारी ने पक्षी का पिंजरा दूलंभ वाब की नाक के. सामने कर दया दुलेभ बाबू ने कहा उस तरफ से भी दिखा । इस तरफ उस तरफ चारों तरफ से अच्छी तरह जांचने-परखने के पश्चात्‌ दुलंभ बावू भी बोले हां हुजूर सुझे भी यह मैना-सी ही लगती है । . मालिक ने कहा जरा अच्छी तरह देखकर वत्ताओ दुलेंभ । आखिर हमें नलो सल्लिक के सामने क्या हार माननी पड़ेगी ? मोहरी बावू भी तब तक वड़े ध्यान से मना का सुआयना कर रहे थे। फिर वोले मुझसे ही गलती हो गई मालिक यह असली मना हीहै। सही कह रहे हो न ? भि बावू ने कहा हां हुजूर। शक की कोई युंजाइश नहीं है । निःसंदेह यह मना ही है । भब और ज्यादा देखने की जरूरत नहीं है । . कर्त्ता वावू यानी मालिक ने पूछा नूलो मठिलक ने इसकी क्या कीमत लगायी थी ? शिकारी ने जवाब दिया हुजूर उन्होंने तो डेढ़ सी कहा था पर मैंने दी नहीं । . हर अच्छी नात है। मैं तुम्हें तीन सौ दूंगा । लेकिन यह वात नूलों मल्लिक से कहकर आना होगा कि मैंने तुमसे वही मैना तीन सौ खरीदी है ।




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