अनुभव प्रकाश | Anubhav Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) चढ़था है ? छूटे सुख है कलेद्या नादीं परि वाइडि सौ ( बाप च चात रोग होने से ) ठे ही ले । तैसें पर मोह सो बध्या है छूटे खुग्व है परि न छूटे है अनादि सपोग छूटे ते खुख्ब दो है परि झूठे ही दुख माने है । याके मेटवे को प्रज्ञादिनी आा- त्मा के परके एफस्वसन्घानमें ढारै चेतना अश अं अपना जाने जाम जड़ ( का ) प्रचेशा नाही। कैसे जाने १? सो कहिये है-- यह परमे आपा जाते है सो यह जान (जानना ) निज बानिगी | इस निज ( ज्ञान चानिगी कौ पहल सत पिडानि पिछानि अजर व्मर भये सो कहने मात्र ही न स्यावै चित्तको व्वेतनाम लीन करे स्वरूप अननुभवका विलास खुखनिवास है ताको करे सो कैमें करै सो कहिये है-- निरन्तर अपने स्वरूपकी भावनासि मम रहे दद्यान ज्ञान चेतनाका प्रकाश उपयोग द्वार में हृढ़ भावे । चिदपरिणतित स्वरूप रस होय है। द्रव्य युण पयायका पथार्थ अघुमभवना प्यपलुभव है। अनुभवते पच परमगुरू भये व होहिंगे . (सो) भसाद पप्न है । अनुभव ।




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